सर्वेश प्रताप सिंह
लखनऊ।उत्तरप्रदेश मे वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने शायद पहला ऐसा बयान दिया है कि जिससे सपा प्रमुख अखिलेश यादव जरूर थोड़ी राहत महसूस कर रहे होंगे।उत्तर प्रदेश में "बिहार पार्ट-टू! क्या बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने पहला कदम बढ़ा दिया है? जैसे कयी अनुतरत्तित सवाल इनदिनों उत्तरप्रदेश के राजनैतिक गलियारों मे प्रमुखता से दौड रहे है।
बसपा सुप्रीमो मायावती के बयान पर कई तरह के कयास लगने शुरू हो गए हैं।उन्नीस सितंबर की सुबह लखनऊ के हजरतगंज से लेकर विधानसभा तक के रास्ते में राजनीतिक गतिविधियां तेज थीं। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव महंगाई के विरोध में सपा कार्यालय से विधानसभा तक पैदल मार्च करने का ऐलान कर चुके थे।विधानसभा चुनाव के बाद यूपी के सियासत में ये पहला मौका था जब अखिलेश यादव जिन पर एसी कमरे में बंद रहने का आरोप लग रहा था, वो पार्टी के विधायकों और कार्यकर्ताओं के साथ सड़क पर थे। हालांकि सदन में सपा का कोई भी सदस्य नहीं पहुंच सका. सपा के सभी विधायक पैदल मार्च को लेकर सड़क पर पुलिस से जूझते रहे। और लखीमपुर खीरी के गोला गोकर्ण के भाजपा के विधायक अरविंद गिरि के निधन पर शोक प्रस्ताव के बाद सदन मंगलवार 11 बजे तक के लिए स्थगित हो गया था।ये यूपी विधानसभा के मानसून सत्र के पहले दिन की एक तस्वीर भर थी. लेकिन मंगलवार को हुए घटनाक्रम की गूंज दिल्ली तक सुनाई दे रही है। इसके साथ ही राजनीति में भविष्य की संभावनाओं का भी एक सवाल बसपा सुप्रीमो मायावती को लेकर उठने लगा है।दरअसल मंगलवार की सुबह बसपा प्रमुख मायावती ने तीन ट्वीट कर दिए जिसमें उन्होंने सपा के पैदल मार्च को पुलिस का इस्तेमाल कर रोकने पर सवाल उठा दिए. उन्होंने लिखा, "विपक्षी पार्टियों को सरकार की जनविरोधी नीतियों व उसकी निरंकुशता तथा जुल्म-ज्यादती आदि को लेकर धरना-प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं देना भाजपा सरकार की नई तानाशाही प्रवृति हो गई है। साथ ही, बात-बात पर मुकदमे व लोगों की गिरफ्तारी एवं विरोध को कुचलने की बनी सरकारी धारणा प्रजातांत्रिक मूल्यों के लिए अति-घातक है।
इसके बाद मायावती ने दूसरे ट्वीट में प्रयागराज विश्वविद्यालय में फीस बढ़ाये जाने का मुद्दा भी उठाया और कहा, " इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा फीस में एकमुश्त भारी वृद्धि करने के विरोध में छात्रों के आन्दोलन को जिस प्रकार कुचलने का प्रयास जारी है वह अनुचित व निन्दनीय है। प्रदेश सरकार अपनी निरंकुशता को त्याग कर छात्रों की वाजिब मांगों पर सहानुभतिपूर्वक विचार करे।
तीसरे ट्वीट में बीएसपी सुप्रीमो ने लिखा महंगाई गरीबी व बेरोजगारी सहित प्रदेश की बदहाल सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य व कानून व्यवस्था पर प्रदेश सरकार की लापरवाही के विरुद्ध धरना-प्रदर्शन नहीं करने देने व उनपर दमन चक्र के पहले भाजपा जरूर सोचे कि उनका भी विधानभवन के सामने बात-बात पर सड़क जाम करके आमजनजीवन ठप करने का इतिहास रहा है।
प्रदेश मे 2019 के चुनाव के बाद यह शायद पहला मौका है जब बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने ऐसी बात बोली हो जो कि समाजवादी पार्टी को राहत दे सके। लेकिन ये बयान ऐसे समय में आया है जब बिहार से उठी विपक्षी एकता की बात दिल्ली तक कही जा रही है. दिल्ली से महाराष्ट्र तक के नेता भी सुर में सुर मिला रहे हैं।इस पूरी कवायद के पीछे नीतीश कुमार को पीएम पद का चेहरा बनाना भी देखा जा रहा है। लेकिन पटना से सीधे दिल्ली का कोई रास्ता नहीं है। सभी को उत्तरप्रदेश से होकर ही जाना पड़ेगा! वहीं विपक्षी एकता की बात पर प्रदेश की दो प्रमुख पार्टियां सपा और बीएसपी इससे पूरी तरह दूरी बनाकर अभी चल रही है।बसपा सुप्रीमो के ये ताजा बयानो ने विपक्ष के लिए एक नयी उम्मीद सी ला दी है।वर्ष 2019 में सपा और बीएसपी गठबंधन के पीछे बड़ा हाथ अखिलेश यादव का रहा ही रहा था।लेकिन इस बार लग रहा है कि पहल मायावती की ओर से की गई है।दरअसल इसके पीछे एक वजह यह भी हो सकती है कि मायावती बीते तीन से ज्यादा सालों से बीजेपी की बी टीम होने की तोहमत झेल रही है। लगता कि बीएसपी सुप्रीमो ने यह बयान देकर इस छवि को तोड़ने की कवायद की है।लोकसभा चुनाव 2019 में बीएसपी को 19.43 फीसदी, सपा को 18.11 फीसदी और तीसरी सहयोगी पार्टी आरएलडी को 1.69 फीसदी वोट मिले थे। पर बसपा ने जहां वर्ष 2014 के चुनाव में एक भी सीट नहीं पाई थी वहीं वर्ष 2019 में उसको दस सीटें मिल गई थीं। सपा को वर्ष 2014 में भी पांच और 2019 में भी पांच सीटें मिली थीं। वंही 2014 की तुलना में बीजेपी को नौ सीटों का नुकसान हुआ था।मोदी और राष्ट्रवाद की लहर में नतीजे भले ही मन-मुताबिक नहीं आए हों लेकिन दोनों पार्टियों का वोट बैंक मिलाकर बीजेपी के आसपास जरूर पहुंच रहा है। दूसरी ओर से नीतीश कुमार को कुर्मी बताकर प्रयाराज की फूलपुर सीट से लड़ाने की बात हो रही है।
यूपी में यादवों के बाद कुर्मी सबसे बड़ा ओबीसी वोटबैंक है और बीजेपी के साथ है। क्योंकि कुर्मी जाति के सभी बड़े नेता अभी बीजेपी के साथ हैं। अगर नीतीश कुमार इसमें थोड़ा भी सेंध लगाने में कामयाब हो जाते हैं तो बीजेपी को नुकसान हो सकता है।
लेकिन अभी प्रदेश मे दो प्रमुख पार्टियों का साथ आ जाना इतना आसान नहीं होगा।क्योंकि अखिलेश यादव पहले ही बसपा सुप्रीमो मायावती के तीखे बयानों को काफी झेल चुके हैं। 2019 के नतीजों के बाद मायावती ने दो टूक कहा था कि सपा का वोट बीएसपी को ट्रांसफर नहीं हुआ. बीएसपी सुप्रीमो को यही बयान सपा-बीएसपी का गठबंधन के टूटने की वजह बनता चला गया. फिलहाल मायावती का ताजा बयान यूपी में बिहार पार्ट-टू के नजरिए से देखा जा रहा है। इस पर राजनैतिक गलियारों मे कई तरह के कयास भी लगाए जा रहे हैं।अब लालू यादव भी कह ऋहे है कि आगामी 2024 में बीजेपी सरकार को सत्ता से बाहर फेंक देंगे। सूत्रों की माने तो जल्द ही सोनिया से मिलने नीतीश के साथ दिल्ली जाने का कार्यक्रम भी बना सकते है लालू प्रसाद यादव।