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भविष्य के लिए थोड़ा बहुत लोकतंत्र तो बचा रहने दीजिए?

Let there be some democracy left for the future?
Highlights बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर दुर्गा पंडाल पर हमला कर दिया जाता है, यह एक तालिबानी सोच का सबसे बड़ा उदाहरण है।

संजीव ठाकुर

स्तंभकार, चिंतक, लेखक, रायपुर छत्तीसगढ़

राजनीति का स्तर जिस तीव्रता से स्खलित होते जा रहा है। अब उनसे किसी भी तरह की सांस्कृतिक संस्कारी आचार संहिता का पालन करने की उम्मीद और आशा नहीं की जा सकती है। राजनीति दिशाहीन,सिद्धांत-विहीन हो गई है। पद और सत्ता का लालच राजनीतिक पार्टियों का अंतिम लक्ष्य हो गया है। आज जिस तरह से राजनीतिक पार्टियां राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव की सांध्य बेला पर सांसदों की अफरा-तफरी और विधायकों की खरीद-फरोख्त मैं मशगूल हो रही है, जातिवाद अवसरवाद पद लोलुपता सिर चढ़कर बोलने लगी है। निश्चित तौर पर लोकतंत्र शर्मिंदा होकर खंडित होने लगा है। संविधान की निर्मात्री सभा के सपने चूर चूर हो रहे हैं यह भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छे दूरगामी परिणामों के संकेत नहीं है। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे कलाम जी ने कहा कि लोकतंत्र या प्रजातंत्र शब्द ग्रीक भाषा से अवतरित अंग्रेजी शब्द डेमोक्रेसी का हिंदी रूपांतरण है, जिसका सीधा सीधा अर्थ होता है प्रजा अथवा जनता द्वारा परिचालित शासन व्यवस्था। किंतु अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की परिभाषा सर्वमान्य रूप से प्रचलित है जिसके अनुसार प्रजातंत्र या लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा, शासन है। उन्होंने इस कथन के तर्क में कहा क्योंकि मैं गुलाम नहीं होना चाहता,इसीलिए मुझे शासक भी नहीं होना चाहिए, यही विचार मुझे लोकतंत्र की ओर अग्रेषित करता है। पर लखीमपुर खीरी, सिंघु बॉर्डर और जशपुर,भोपाल में हिंसक घटनाओं को देखते हुए लगता है कि सारी की सारी लोकतांत्रिक व्यवस्था चरमरा गई है और समस्त प्रतिमान धारासाही हो गए हैं। लखीमपुर खीरी की विभत्स घटना जिसमें 7 लोगों को वाहन से रोड पर कुचल कर मार दिया गया इनमें से कुछ लोगों को भीड़ ने पीट-पीटकर ही मार दिया एक बेचारा निर्भीक पत्रकार इस हिंसा की बलि चढ़ गया। सिंधु बॉर्डर में कुछ निहंगो ने एक निर्दोष व्यक्ति की पीट पीट कर हत्या कर दी। जशपुर में भीड़ पर गाड़ी चला कर कुछ लोगों की कुचल कर हत्या कर दी, सबसे ताजा घटना महाराष्ट्र में तख्तापलट एवं अन्य राज्यों में सत्ता को हिलाने का प्रयास लोकतंत्र से खिलवाड़ करने की सबसे निचले स्तर की कार्रवाई मानी जाएगी। दूसरी तरफ राजनैतिक हिंसक घटनाओं के पीछे यदि कारण खोजे जाएं तो राजनीतिक पार्टियों के एजेंडा में ही कई कारण मिल जाएंगे।अफगानिस्तान में तालिबानी आतंकवादियों द्वारा कब्जे के बाद वैश्विक अशांति का दौर चल रहा है, रूस यूक्रेन युद्ध औपनिवेशिकवाद तथा विस्तार वादी मंसूबों का परिणाम ही है । इसके अलावा अधिकांश लोकतांत्रिक देश इस अशांति से भयभीत और घबराए हुए और अपनी आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करने में लग गए हैं। तालिबान आतंकवादियों द्वारा अफगानिस्तान पर कब्जे से तालिबानी सोच पूरे विश्व में धीरे-धीरे फैलने लगी है। खासकर लोकतांत्रिक देश जहां बोलने, सुनने, कहने और अपनी मनमर्जी करने की आजादी है, वहां लोकतंत्र का फायदा उठाकर कुछ असामाजिक तत्व हिंसा का घिनौना खेल खेलने से नहीं चूक रहे हैं। बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर दुर्गा पंडाल पर हमला कर दिया जाता है, यह एक तालिबानी सोच का सबसे बड़ा उदाहरण है। पाकिस्तान में सिखों को चुन-चुन कर मारा जाना भी इसी सोच का परिणाम है। लखीमपुर खीरी में बवाल मचाने वाले अनेक नेता जम्मू कश्मीर में अल्पसंख्यकों के जघन्य हत्याकांड पर अजीब तरीके से चुप हैं और उनकी सहानुभूति के लिए एक शब्द उनके मुंह से नहीं निकल रहे हैं। आज हर व्यक्ति, हर पार्टी, हर समूह के लिए लोकतंत्र के मायने अलग-अलग हैं। जब तक इनका उल्लू सीधा होता रहता है तब तक यह लोकतंत्र की दुहाई देते हैं, इनका स्वार्थ सधने के बाद लोकतंत्र हवा में वाष्पित हो जाता है। भारत जैसे विशाल देश में इसे विश्व में सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक लोकतांत्रिक देश के रूप में जाना जाता है, इस देश में जिसकी मूल आत्मा ही प्रजातंत्र, लोकतंत्र है,यही पर यदि लगातार अलोकतांत्रिक घटनाएं होती रहेंगी और अलोकतांत्रिक व्यवहार दर्शित होता रहेगा तो लोकतंत्र की मूल भावना न सिर्फ आहत होगी बल्कि गायब भी होना शुरू हो जाएगी। यहीं से लोकतंत्र के स्खलन की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। हम सारी अनुकूल प्रतिकूल परिस्थितियों पर गंभीरता के साथ विचार करें, तो पाएंगे कि प्रजातांत्रिक व्यवस्था में जन्मी समस्याओं के पीछे शासन तंत्र नहीं बल्कि जनता के बड़े वर्ग का नेतृत्व करने वाले समूह इसका जिम्मेदार है। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने कहा था कि जो लोग शासन करते हैं उन्हें देखना चाहिए कि लोग साथ प्रशासन पर किस तरह प्रतिक्रिया जाहिर करते हैं, क्योंकि प्रजातंत्र में अंतर मुखिया जनता ही होती है, दूसरी तरफ आम नागरिकों का मार्ग प्रशस्त करते हुए कहा कि कानून का सम्मान किया जाना चाहिए ताकि हमारे लोकतंत्र की बुनियाद एवं उसकी संरचना बरकरार रहे और साथ ही मजबूती के साथ खड़ी रहे। भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का भी कहना है कि लोकतंत्र में जनमत हमेशा निर्णायक होता है और हमें इसे विनम्रता से स्वीकार करना पड़ेगा। हम सभी देशवासियों को प्रजातंत्र की सफलता हेतु सजग एवं सचेत रहकर अपने अधिकारों का सदुपयोग करते हुए अपने कर्तव्यों का भी पूर्ण निष्ठा से पालन करना होगा। जवाहरलाल नेहरु जी ने भी कहा था कि प्रजातंत्र और समाजवाद लक्ष्य पाने के साधन हैं, स्वयं लक्ष्य नहीं। भारत के संदर्भ में लोकतंत्र है प्रजातंत्र के बारे में यही कहा जा सकता है कि यदि जनता अशिक्षित हो या अधिक समझदार ना हो तब प्रजातंत्र की खामियां सबसे ज्यादा सामने आती है। यदि जनता अति शिक्षित एवं समझदार है तो इसे सर्वोत्तम शासन व्यवस्था कहा जा सकता है क्योंकि किस प्रणाली में जनता को अपनी बात रखने का पूर्ण अधिकार प्राप्त होता है। प्रजातंत्र की सफलता के लिए जनता को सजग एवं सचेत रहकर अपने अधिकारों का सदुपयोग कर अपने कर्तव्यों का भी निष्ठा से पालन करना चाहिए।

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