श्रीकांत
उन्नाव। जनपद में पुरवा विधानसभा निकट अकोहरी चौराहा स्थित
अमरराज परिवार के द्वारा शिष्य समागम का आयोजन किया गया। जिसमें लगभग दो हजार
शिष्य कार्यक्रम में शामिल हुए। अमरराज परिवार का मतलब ही जात-पात, धर्म से अलग उठकर
सामाजिक कार्य में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना,
गरीब मजलूमों की मदद करना,
जो लोग शिक्षा से वंचित हैं उन्हें शिक्षित करके आगे बढ़ाना है। यह शिक्षण
संस्थान सिर्फ जनपद ही नहीं पूरे प्रदेश में गुरुकुल शिक्षा पद्धति का एहसास कराता
है। यहां के शिष्य प्रदेश ही नहीं विदेशों में भी अच्छे पदों पर कार्यरत हैं। आखिर
यहां के शिष्य आगे क्यों न जाये?
जब भगवान रूपी यहां के शिक्षक अमरनाथ है,
यहां के गुरुजी शिष्यों के लिए भगवान है। संस्थान में पढ़ने वाले शिष्य सिर्फ
शिष्य तक ही सीमित नहीं रहते है बल्कि अमरराज परिवार के सदस्य बन जाते है। यहां के
शिक्षक, शिष्य को
अपने बच्चे की तरह मानते हैं। लगभग तीन दशक पहले इस संस्था को गुरु अमरनाथ ने शुरू
की थी। अपने शिष्य जीवन के दौरान उन्होंने खूब संघर्ष किया था।
उन्होंने बताया जब हम शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तब कई किलोमीटर पैदल स्कूल जाना पड़ता था, स्कूल समय से पहुंचे, इसलिए सुबह जल्दी उठना पड़ता था। मौरावा से इंटरमीडिएट करने के बाद आगे की पढ़ाई करने के लिए लखनऊ जाना था। स्थिति सही नहीं थी, लेकिन संघर्ष किया और लखनऊ में दाखिला लिया। व्यवस्थाओं को मेंटेन करने के लिए कुछ समय के बाद बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का काम शुरू किया। उन्होंने बताया हमने अपनी मजबूरी को संघर्ष में बदला, ईश्वर ने साथ दिया और किसी तरह चीजें सही हुई। ग्रेजुएशन और उसके बाद पोस्ट ग्रेजुएशन लखनऊ से किया था। लखनऊ से घर की दूरी महज 40 किलोमीटर थी लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण सोचना पड़ता था आखिर कैसे जाएं?
उन्होंने बताया हमने शिक्षा ग्रहण करने के बाद समाज में शिक्षा के प्रति लोगों को जागरूक किया। समाज के लोग शिक्षा से कैसे जुड़े? क्योंकि अमूमन यह होता है कि बच्चों को उचित जानकारी और समाज में शिक्षा के अभाव के कारण वह जानकारियों से अनभिग्य होते हैं। हमने यह निश्चय किया था कि जिस प्रकार से पढ़ने के लिये हमने संघर्ष किया अब हमारे जनपद का कोई बच्चा न करे। इसलिए हमने अमरराज संस्थान की स्थापना की थी। पढ़ने वाले बच्चे और आर्थिक रूप से कमजोर बच्चे, जिन लोगो ने स्कूल छोड़ दिया था उन लोगो को जागरूक किया। हमारा प्रयास था कि कोई भी बच्चा अपनी ग़रीबी के कारण अशिक्षित न रह जाए।
कुछ पूर्व छात्रों ने बताया गुरुजी ने हमें शिक्षित करके हमारे जीवन को ही सवार दिया है। हमारे हालात कुछ ऐसे थे कि कुछ समय गुरुजी की कोचिंग संस्थान जाने के बाद पैसे के अभाव में बंद कर दिया था। कुछ दिन कोचिंग न जाने पर गुरुजी ने पता लगाया कि बच्चा पढ़ने क्यों नहीं आ रहा है, तब बच्चे ने आर्थिक स्थित का जिक्र किया। इस बात को सुनकर गुरुजी ने कहा आप शिक्षा ग्रहण करो और आगे बढ़ो, आपसे फीस किसने मांगी है। हालांकि यह तो सिर्फ एक बच्चे की कहानी है संस्थान के गुरुजी ने हजारों बच्चों को अपने ज्ञान रूपी दीपक से सजाया है।
गुरुजी ने बताया हमारे हजारों शिष्य पूरे देश व प्रदेश के विभिन्न जनपदों में सरकारी व प्राइवेट संस्थानों में कार्यरत हैं। सभी शिष्यों से एक साथ कैसे मिला जाए? हमारे सारे दीप एक साथ कैसे इकट्ठा हो? इसके लिए दीपावली से एक दिन पूर्व शिष्य समागम का आयोजन किया जाता है। जब हम दीपावली से पहले इन दीपों को देखते हैं तब हमें लगता है कि हमने दुनिया का वह सब कुछ हासिल कर लिया जो एक सफल व्यक्ति के जीवन में होती है। हमारे जीवन की यही धरोहर है, जिसे हमने बनाया है। जब हमारे सभी बच्चे वर्ष में एक बार आते हैं तब हमें लगता है कि हम बहुत सौभाग्यशाली हैं। सभी बच्चे मंच पर खड़े होकर अपनी अपनी कला का प्रदर्शन करते है, यह कार्यक्रम पूरी रात चलता है। उसके बाद अगले दिन सभी विद्यार्थियों की विदाई होती है