सिद्धार्थ शंकर
लगता है कि पाकिस्तान के शासकों को अपने नागरिकों से ज्यादा कश्मीर की चिंता है। तभी तो बाढ़ से घिरे अपने देश को उसके हाल पर छोड़ प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ कश्मीर का राग अलाप रहे हैं। वह भी तब जब पाकिस्तान में बाढ़ से हालात बेकाबू हो चुके हैं। 10 दिनों की बारिश के कारण पाकिस्तान में एक तिहाई हिस्सा डूब चुका है। 3.3 करोड़ से ज्यादा लोग विस्थापित हो चुके हैं। एक हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। पाकिस्तान की सरकार के लिए सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि उसके पास इस विनाशकारी आपदा से निपटने के लिए न पैसा है न ही राशन। पाक के वित्त मंत्री ने कहा कि वे भारत से खाद्य आयात पर विचार कर सकते हैं। दूसरी ओर पाक पीएम शहबाज शरीफ ने एक बार फिर जम्मू कश्मीर का राग अलापते हुए भारत पर अनर्गल आरोप लगाते हुए शरीफ ने कहा भारत में नरसंहार चल रहा है। धारा 370 हटाकर भारत ने कश्मीर पर कब्जा कर लिया है।
विनाशकारी बाढ़ में मदद के लिए दुनिया की तरफ टकटकी लगाए पाक के लिए राहत वाली बात तब सामने आई जब, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करते हुए पड़ोसी मुल्क में प्राकृतिक आपदा पर दुख व्यक्त किया और कहा कि आपदा से प्रभावित लोगों के परिवारों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करता हूं। पीएम मोदी के इस बयान से दोनों देशों के बीच संभावित सहयोग की उम्मीद जगी है। भारत सरकार पाकिस्तान को मदद मुहैया कराने के लिए हाई लेवल पर मीटिंग भी कर रही है लेकिन, इन उम्मीदों को झटका पाक पीएम शहबाज शरीफ के बयान से लगा। खाद्य आयात और भारत के साथ व्यापार को फिर से शुरू करने पर सवालों पर उन्होंने कहा, भारत के साथ व्यापार करने में कोई समस्या नहीं होगी लेकिन वहां नरसंहार चल रहा है और कश्मीरियों को अधिकारों से वंचित कर दिया गया है। जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने और तत्कालीन राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के भारत के 2019 के फैसले का जिक्र करते हुए शरीफ ने कहा अनुच्छेद 370 को समाप्त करके कश्मीर को जबरन कब्जा कर लिया गया है।
एक तरफ शहबाज कहते हैं, मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बैठकर बात करने के लिए तैयार हूं। हम युद्ध बर्दाश्त नहीं कर सकते। हमें अपने-अपने देशों में गरीबी को कम करने के लिए अपने अल्प संसाधनों को समर्पित करना होगा। वहीं दूसरी तरफ बोले कि हम इन मुद्दों को हल किए बिना शांति से नहीं रह सकते। शहबाज की दोनों बातों से साफ है कि वे मुसीबत से घिरे हैं और भारत की मदद लेने से परहेज नहीं है, साथ ही कश्मीर का मुद्दा उठाकर वे भारत की मदद को अहसान मानने को तैयार नहीं हैं। वे मदद भी ठसक के साथ लेना चाहते हैं। वे यह भूल गए कि भारतीय परंपरा में पड़ोसी कितना भी जाहिल या अडिय़ल क्यों न हो, मुसीबत में उसे अकेला नहीं छोड़ा जाता। सो, शहबाज कश्मीर को छोड़ अपने नागरिेकों की चिंता करें। अब रही बात भारत की तो भारत का शुरू से दृढ़ मत रहा है कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है।
भारत हमेशा से कहता आया है कि कश्मीर मसले पर वह पाकिस्तान के साथ बातचीत को हमेशा तैयार है, लेकिन इसके लिए सबसे पहले वह सीमापार आतंकवाद को बंद करे। पाकिस्तान की सेना कश्मीर को भारत के खिलाफ बड़े हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की रणनीति पर चलती आई है। पाकिस्तान का इतिहास बताता है कि अब तक जितनी भी निर्वाचित सरकारें सत्ता में रहीं या जो सैन्य शासक रहे, कश्मीर पर सबका एक ही रुख रहा है। दरअसल, अभी तक भारत के प्रति पाकिस्तान के रवैए में कोई बड़ा सकारात्मक बदलाव नजर नहीं आया है। भारत सरकार फिलहाल "देखो और प्रतीक्षा करोÓकी नीति पर चले, यही बेहतर है। पाक सरकार के सामने इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती पाकिस्तान का आर्थिक संकट है। देश की अर्थव्यवस्था पेंदे में जा चुकी है। पाकिस्तान तीस खरब डॉलर के कर्ज में डूबा है।