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प्रेस काउंसिल की राजस्थान सरकार को फटकार

जयपुर/नई दिल्ली। प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) ने इस बात के लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की खिंचाई की कि उन्होंने जनवरी 2020 यानी पिछले करीब तीन साल से अपने अनुकूल खबरें प्रकाशित नहीं करने के कारण राज्य के प्रमुख हिन्दी दैनिक राष्ट्रदूत को राज्य सरकार के विज्ञापन देना बंद कर रखा है। पीसीआई ने प्रथम दृष्टया उन्हें विज्ञापन जारी किये जाने के मामले में इस समाचार पत्र के प्रति भेदभाव बरतने का दोषी ठहराया है।

प्रेस काउंसिल के इस ऐतिहासिक फैसले से अन्य ऐसे बहुत से अखबारों को सरकार के दमन के खिलाफ संघर्ष में मदद मिलेगी, जो यदि सरकार की राजनीतिक सोच का अनुसरण नहीं करते हैं तो उन्हें दबाने के लिए उनके विज्ञापनों में भारी कटौती कर दी जाती है, इस प्रकार कई अखबार तो बंद होने को मजबूर कर दिए जाते हैं।

पीसीआई ने राजस्थान के मुख्यमंत्री द्वारा 16 दिसम्बर, 2019 को जयपुर की एक प्रेस कान्फ्रेंस में दिये गये इस विवादास्पद बयान पर ’कड़ी नाराजगी’ व्यक्त की, ""केवल उन्हीं अखबारों को सरकारी विज्ञापन मिलेंगे, जो सरकारी स्कीमों का प्रचार-प्रसार पूरे मनोयोग के साथ करेंगे।""

पीसीआई ने इसका स्वतः संज्ञान लेते हुए राजस्थान सरकार को नोटिस जारी करते हुए कहा कि वह अशोक गहलोत की इस अनुचित टिप्पणी का स्पष्टीकरण दें। पीसीआई ने एक अंदरूनी जांच रिपोर्ट को भी स्वीकार कर लिया, जिसमें कहा गया है, ""मुख्यमंत्री द्वारा दिया गया यह बयान कि, विज्ञापन उन्हीं समाचार पत्रों को जारी किये जायेंगे, जो सरकारी स्कीमों का प्रचार-प्रसार करेंगे, एक ऐसा कदम है, जिससे जनता के हित तथा उसके लिए महत्वपूर्ण समाचारों का प्रकाशन एवं प्रचार-प्रसार रुक जाने की संभावना है। अगर ऐसे बयानों पर अमल होता है तो इससे उन अखबारों की आर्थिक जीवन क्षमता पर प्रतिकूल असर पड़ने की संभावना है, जिन्हें संभवतया राजनीतिक कारणों से विज्ञापन नहीं दिये जायेंगे, तथा इसके चलते, जनता के हित तथा उसके लिए महत्वपूर्ण समाचारों के प्रकाशन एवं प्रचार-प्रसार करने की अखबारों की क्षमता पंगु हो जायेगी।""

उल्लेखनीय है कि प्रदेश के सबसे पुराने समाचार पत्रों में से एक "राष्ट्रदूत’ राजस्थान का एक प्रमुख दैनिक है लेकिन सरकारी विभागों, बोर्डों तथा निगमों द्वारा इसे दिये गए विज्ञापनों से होने वाली आय के लिहाज से इसे नौंवे स्थान पर उतार दिया है। इस अखबार द्वारा पेश किये गये तथ्यात्मक आंकड़े दर्शाते हैं कि इसे वर्ष 2020 के प्रथम 10 महीनों तथा वर्ष 2022 के प्रथम सात महीनों में राज्य के डायरेक्टोरेट ऑफ इन्फॉर्मेशन एंड पब्लिक रिलेशन (डीआईपीआर) से कोई विज्ञापन प्राप्त नहीं हुआ। सन् 2021 में भी जब पीसीआई ने भेदभाव बरतने के संबंध में राज्य सरकार को नोटिस जारी किया, तब कहीं जाकर इसे करीब 10 प्रतिशत जैसी नगण्य राशि के ही विज्ञापन जारी किये गये।

जांच रिपोर्ट में, ""भेदभाव पूर्ण तरीके’’ तथा राज्य सरकार की ’’मॉडल एडवरटिजमेंट पॉलिसी गाइड, 2014’’ के उल्लंघन को दर्शाने वाले बयान के लिए मुख्यमंत्री पर प्रहार किया गया है। पीसीआई ने राज्य सरकार के इस दावे को खारिज कर दिया कि यह मामला प्रेस काउंसिल के अधिकार क्षेत्र की परिधि में नहीं है तथा इसलिए इसे राज्य सरकार को कोई भी निर्देश जारी करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि इसका अधिकार क्षेत्र केवल समाचार पत्रों तथा समाचार एजेंसियों तक सीमित है।

पीसीआई इस अखबार की इस बात से सहमत थी कि राज्य सरकार ने क्षेत्राधिकार के मुद्दे को जांच रोकने के उद्देश्य से उठाया है, जबकि संसद के एक अधिनियम के जरिये स्थापित पीसीआई के उद्देश्य में साफ तौर पर कहा गया है कि इसका उद्देश्य भारत में प्रेस की स्वतंत्रता को संरक्षण प्रदान करना तथा प्रेस के स्तर का सुधार करना है। पीसीआईएक्ट, 1978 की धारा 13(1) इसी सिद्धांत को साकार करती है तथा धारा 13(2) आगे पुनः कहती है कि प्रेस काउन्सिल का मुख्य काम समाचार एजेंसियों तथा समाचार पत्रों की उनकी स्वतंत्रता बनाये रखने के मामले में मदद करना है।

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