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लोकतंत्र की हुई हत्या को भुलाया नहीं जा सकता : दिनेश भारद्वाज

The murder of democracy cannot be forgotten: Dinesh Bhardwaj
Highlights लोकतंत्र बहाली के लिए गए जेल, भूखे रहकर किया आमरण अनशन

फिरोजाबाद। आपातकाल के उन दिनों की याद कर फिरोजाबाद के लोकतंत्र सेनानी आज भी गुस्से से भर जाते हैं। वह कहते हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिर गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाकर लोकतंत्र की जो सरेआम हत्या की, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।लोकतंत्र सेनानी दिनेश भारद्वाज कहते हैं कि लोकतंत्र की बहाली के लिये वह किशोर अवस्था में जेल गए। जेल में वीर रस के गीतों से जो जोश पैदा होता था, उन गीतों को वह आज तक नहीं भूले हैं।नया रसूलपुर निवासी लोकतंत्र सेनानी दिनेश भारद्वाज बताते हैं कि 25 जून 1975 को जिस समय आपातकाल लगा, वह गोपीनाथ इंण्टर कालेज के इण्टरमीड़िएट के छात्र थे। उस समय उनकी उम्र लगभग 16 वर्ष थी। इसके साथ ही वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पेमेश्वर शाखा के स्वयसेवक भी थे। आपातकाल लगते ही पूरे देश की भांति फिरोजाबाद में भी सभी विपक्षी दलों के राजनेताओं, समाजसेवियों व संघ के अनेक कार्यकर्ता जिनमें जगदीश उपाध्याय, लक्ष्मीनारायण जैन, रामप्रकाश अग्रवाल, आश्चर्य लाल नरूला और रद्युवर दयाल वर्मा जैसे अनेक बडे लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। उसके पश्चात लोक जागरण के लिये साहित्य घर-घर पहुंचाना, दीवारों पर लोकजागरण के नारे लिखना एवं लोकतंत्र समर्थक जनता का मनोबल बढ़ाने का भार तत्कालीन प्रचारक हरिओउम के निर्देशन में हम नौजवानों के कंधों पर आ गया।उन्होंने बताया कि हमने अपने अन्य साथियाें, जिनमें नाहर सिंह सिकरवार, चन्द्र प्रकाश गुप्ता, दिनकर प्रकाश गुप्ता, हरिओम गुप्ता, गिरजा शंकर गुप्ता, सुशील मिश्रा व रवीन्द्र शर्मा के साथ इस जिम्मेदारी का निर्वह्न किया।

गिरफ्तारी के बाद भी लगाए ‘भारत माता की जय’ के नारे

श्री भारद्वाज बताते हैं 14 नवम्बर 1975 को लोकसंघर्ष समिति के आवाह्न पर पूरे देश में सत्याग्रह प्रारम्भ हुआ और फिरोजाबाद में भी पहला जत्था चन्द्र प्रकाश गुप्ता के नेतृत्व में सत्याग्रह के लिये सड़क पर आ गया। इस जत्थे में उनके अलावा दिनकर प्रकाश गुप्ता, नाहर सिंह सिकरवार, सत्यप्रकाश अग्रवाल, उमाशंकर गुप्ता और सुरेश चन्द्र सहित करीब 300 से 400 लोग मौजूद थे। जत्था शहर की मशहूर बौहरान गली से जुलूस के रूप में नारेवाजी करते हुये घण्टाघर की तरफ बढ़ा तो शास्त्री मार्केट में पुलिस ने सात लोगों को गिरफ्तार कर लिया। जिसमें वह भी शामिल थे। जबकि अन्य लोग पुलिस के ड़र से भाग गये।उन्होंने बताया कि गिरफ्तारी के बाद भी वह डरे नहीं, उन्होंने पुलिस के सामने ही इंदिरा की जागीर नहीं है हिन्दुस्थान हमारा है, लोकतंत्र बहाल करो और भारत माता की जय जैसे नारे लगाए।

जेल में भूखे रहकर किया आमरण अनशन

उन्होंने बताया कि वह जेल में रहने के दौरान घबराये नहीं, जेल में वीर रस के गीत से जो जोश पैदा होता था, उसे आज तक नहीं भूले हैं। प्रशासन ने उनके परिवार पर भी दवाब बनाया, लेकिन परिवार घबराया नहीं। वह बताते हैं कि आगरा जेल में उन्होंने लोकतंत्र की बहाली और गिरफ्तार लोगों की रिहाई के लिये लगभग 8 दिन भूखे रहकर आमरण अनशन किया। जिससे जेल प्रशासन भी परेशान हो गया और उन्हें व उनके साथी दिनकर प्रकाश गुप्ता के साथ एटा जेल भेज दिया गया। लगभग सात माह तक जेल में रहने के बाद अप्रैल 1976 को वह जेल से बाहर आये।


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