विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन
संसार की प्रथा हैं जब किसी स्त्री का विवाह होने के तत्पश्तात यदि वह विधवा हो जाय या वह सुहाग रात में न मना तब भी वह शादीशुदा कहलाती हैं और वह श्रीमती के नाम से सम्बोधित होने लगती हैं। वह ससुराल में बराबर की हक़दार हो जाती हैं। उसका मायका छूट जाता हैं और वह ससुराल की हो जाती हैं। उसका कहना रहता हैं की में डोली में आयी थी और काँधें पर जाउंगी। सिर्फ सात फेरे और मांग में सिंदूर।चाहे वह मंदिर में जाकर चुपचाप करले या कोर्ट में जाकर या सामाजिक स्तर पर। यानी वह सब अधिकार सम्पन्न हो जाती हैं, वैधानिक रूप से। कोई उसके अधिकारों को चुनौती नहीं दे सकता हैं।
जिस प्रकार हमारा शरीर नश्वर हैं और हमारी आत्मा अजर अमर हैं, वह जिस प्रकार का शरीर होता हैं उस हिसाब से उसमे रहती हैं। मजेदार बात यह हैं वह शरीर में रहते हुए, जब तक शरीर जिन्दा रहता हैं तब तक आत्मा का स्थान हैं, उससे कोई वंचित नहीं हैं। लोग कहते हैं की हमने आत्मा नहीं देखी, तो हम कैसे उसे माने या हमने भगवान् नहीं देखा। भैय्या आपको घी कहाँ से मिलता हैं बताओ ?दूध से, कैसे मिलता हैं। घी को गर्म कर मलाई निकालो और उसे एकत्रित कर मथानी से मथो और उससे क्रीम निकालकर गर्म करो और घी मिल जाता हैं पर घी से दूध नहीं मिल सकता हैं। एक बार घी बना फिर उसका उपयोग करो। ऐसा ही भगवान् का स्थान हैं, हमारे शरीर में विराजित हैं बस शरीर को तपस्या द्वारा तपाना पड़ता हैं, बस तप गए तो बन गए भगवान। तप से विपरीत पत होता हैं, यानी तपन का विपरीत पतन। वैसे सच्चे साधु का पतन नहीं हो पाता हैं। यानी शरीर और आत्मा का चोला हैं। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। इस शरीर से अच्छा काम करलो या बुरा।
इसी प्रकार हमारे देश में विधायकी और सांसद का शरीर और आत्मा विधान सभा या सँसद भवन होती हैं। जिस दिन इन में से कोई भी पद मिला या जीते, और उसके बाद जैसे ही शपथ ली वे शासन की शादीशुदा स्त्री बन जाते हैं। यानी वे उस कुनबा के सदस्य हो गए जहाँ से कोई उन्हें न निकाल सकता, न भगा सकता और न उनके कोई हक़ हकूक को कम कर सकता। जिस प्रकार स्त्री सधवा हो या विधवा उसे जीवित रहने तक सम्पूर्ण अधिकार होते हंह इसी प्रकार विधायक या सांसद भूतपूर्व होने पर अथवा मृत होने तक पूरे तौर से अधिकृत होते हैं सब प्रकार का वेतन, भत्ता और सुख सुविधाएँ। जिस प्रकार ससुराल में बहु वरिष्ठ होने पर कभी देवरानी, कभी जिठानी और कभी सास और कभी आजी सास के साथ माँ, बड़ी माँ, सासु माँ और फिर दादी कहलाती हैं उसी प्रकार पहले कनिष्ठ विधायक, या सांसद, फिर वरिष्ठ, वरिष्ठतम, मंत्री, मुख्य मंत्री प्रधान मंत्री, राज्यपाल, राष्ट्रपति तक की पात्रता हो जाती हैं। यदि कभी विधवा यानी पद धारक न हो तो भी उन्हें सम्मान मिलता रहता हैं। जिस प्रकार नई बहु ससुराल में गयी तब वह ताजिंदगी उस घर की हो जाती हैं, उसे कभी अवकाश नहीं मिलता, न लेती हैं वह चौबीस घंटे सात दिन और पूर्ण आयु तक कार्यरत मानी जाती हैं वैसे ही विधायक, मंत्री मुख्यमंत्री, प्रधान मंत्री, आदि यानी ता जिंदगी के सेवक या मालिक होते हैं। इसका मतलब उनका एक एक बून्द खून, देश के लिए समर्पित रहता हैं।
इससे सिद्ध होता हैं की हमारे विधायक, सांसद या तो आत्मा, परमात्मा जैसे अजर अमर रहते हैं या सधवा या विधवा स्त्री जैसे साधन सम्पन्न। हमारे हिसाब से सधवा या विधवा होते हैं, कारण स्त्री या पुरुष परगमन में विश्वास रखते हैं। जिस प्रकार गाय भैस आदि मालिक से मतलब नहीं रखते, वे रखते हैं जो उनको चारा, भूसा या खाने दे, उनको नहीं पता की वह सोने की चूड़ी पहने या नंगे हाथ हैं। इसी प्रकार नगर वधु को व्यक्ति से नहीं उसके धन दौलत से मतलब होता हैं, माल ख़तम उसको लात मारो भगाओ। वैसी ही जिसने इनको लालच दी उसी तरफ जाते हैं और लार टपकाते हैं। वैसे अब नगरवधू और चुने हुए प्रतिनिधि में कोई विशेष अंतर नहीं होता हैं। कहा जाय तो ये ताश के तिरेपनवे पत्ते होते हैं, या पानी, जिसमे मिला दो उन ऐसा। पानी रे पानी तेरा रंग कैसा, जिसमे मिला दो उस जैसा। इसलिए तो ये चलित भगवान् होते हैं।