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सप्ताह के सातों वार का है अलग-अलग महत्व

The seven wars of the week have different significance

त्रयोदशी के दिन रखे जाने व्रत को प्रदोष व्रत कहते हैं। जिस तरह हर महीने में दो एकदशी होती हैं उसी तरह हर महीने में प्रदोष भी दो होते हैं। प्रदोष का सामान्य अर्थ है रात का शुभारंभ। सूर्यास्त के बाद होने वाला संध्या काल और रात्रि प्रारम्भ से पहले के काल को प्रदोष काल कहते हैं। यानि सूर्यास्त और रात्रि का संधि काल प्रदोष काल कहलाता है। हर महीने के दोनों पक्षों (शुक्ल और कृष्ण) की त्रयोदशी के दिन प्रदोष व्रत रखने का प्रचलन वैदिक काल से चला आ रहा है।

त्रयोदशी तिथि के प्रदोष नामकरण के पीछे एक पौराणिक कथा है। दक्ष प्रजापति से मिले शाप के कारण चंद्र देवता को क्षय रोग हो गया था। उस शाप के निवारण के लिए चंद्रदेव ने महादेव की तपस्या की और भगवान आशुतोष ने त्रयोदशी तिथि के दिन चंद्रदेव को दर्शन देकर उस शापजनित कष्टों से उन्हें मुक्त किया था। तभी से इस तिथि को प्रदोष कहा जाने लगा।

स्त्री और पुरुष दोनों ही प्रदोष व्रत रख सकते हैं। क्योंकि यह व्रत दोनों के लिए सामान रूप से फलदायी है। इस व्रत के बारे में एक और खास बात यह है कि सप्ताह के जिस वार को त्रयोदशी तिथि पड़ती है उसी वार के नाम पर प्रदोष का एक उपनाम भी है, इस तरह सात वारों के अनुसार सात प्रदोष माने गए हैं। प्रत्येक वार के प्रदोष व्रत का फल और विशिष्टताएँ अलग होती हैं। आइये इन सातों प्रदोष व्रतों के नाम और उनको करने से प्राप्त फल के बारें में जाने...

रवि प्रदोष : रविवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष को रवि प्रदोष या भानुप्रदोष कहते हैं। इस दिन नियम पूर्वक व्रत रखने से जीवन में सुख, समृद्धि, आरोग्यता और दीर्घायु की प्राप्ति होती है।

सोम प्रदोष : सोमवार को पड़ने वाली त्रयोदशी को सोम प्रदोष कहते हैं। सर्व मनोकामनाओं की पूर्ति और इच्छित फल की सिद्धि के लिए यह व्रत रखा जाता है।

मंगल प्रदोष : मंगलवार के दिन पड़ने वाली त्रियोदशी को मंगल प्रदोष या भौम प्रदोष कहते हैं। इस दिन व्रत रखने से पापों से मुक्ति, उत्तम स्वास्थ्य प्राप्ति, रोगों और कर्ज से छुटकारा मिल जाता है।

बुध प्रदोष : बुधवार के दिन पड़ने वाली त्रयोदशी को बुध प्रदोष कहते हैं इस दिन व्रत रखने से शिक्षा एवं ज्ञान प्राप्ति, मनोकामना पूर्ति और भारी कष्टों से छुटकारा मिलता है।

गुरु प्रदोष : गुरुवार के दिन आने वाली त्रयोदशी का व्रत रखने से बृहस्पति ग्रह से शुभ प्रभाव की प्राप्ति के साथ-साथ पितरों से आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। शत्रु व खतरों के विनाश और हर प्रकार की सफलता प्राप्ति के लिए गुरुवारा प्रदोष व्रत का पालन अच्छा रहता है।

शुक्र प्रदोष : शुक्रवार को पड़ने वाली त्रयोदशी को शुक्र प्रदोष अथवा भ्रुगुवारा प्रदोष भी कहते हैं। इस व्रत का पालन करने से जीवन में सुलक्षण जीवनसाथी की प्राप्ति, सौभाग्य वृद्धि, सफलता और सर्व कल्याण की प्राप्ति होती है।

शनि प्रदोष : शनिवार को पड़ने वाली त्रयोदशी व्रत के पालन से नौकरी में पदोन्नति, सुख-समृद्धि और संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है।

ऐसा विश्वास है कि रवि प्रदोष, सोम प्रदोष व शनि प्रदोष के व्रत का विधि-विधान और श्रद्धा से पालन करने से अतिशीघ्र कार्यसिद्धि होकर अभीष्ट फलों की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार सर्वमनोकामना पूर्ति और कार्यसिद्धि के लिए यदि कोई 11 या वर्ष भर के सभी त्रयोदशी व्रतों का पालन करता है तो भगवान महादेव उसकी समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण करते है।

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