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भारतीय वन अधिनियम-1927 को हल्का नहीं कठोर बनाये जाने की है आवश्यकता

There is a need to make the Indian Forest Act-1927 strict, not mild.

रत्नाकर त्रिपाठी “सामवेदी”

जंगलों में अवैध पेंड कटान पर जेल की सजा को समाप्त करने के लिए कवायद की जा रही है। केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने भारतीय वन अधिनियम 1927 में संशोधन का प्रस्ताव किया है। मंत्रालय का प्रस्ताव है कि अवैध अतिक्रमण और पेंड काटने के मामले में 6 माह की होने वाली जेल की सजा को 500 रुपये के अर्थदंड के रूप में परिवर्तित कर दिया जाये। मंत्रालय ने इस प्रस्ताव को लेकर आमजनमानस से सुझाव भी मांगें हैं।
 
पर्यावरण चिंतक इस प्रस्ताव को लेकर निराश हैं। पर्यावरणविद मानते हैं ऐसा प्रस्ताव पर्यावरण के लिए घातक होगा। वन अधिनियम को कमजोर नहीं कठोर करना होगा। ऐसे तो अवैध कटान करने वाले सजा की जगह पांच सौ रूपए देकर कटान को और बड़े पैमाने पर अंजाम देंगें। क्या मामूली अर्थदंड लगाकर अवैध कटान को रोका जा सकता है? या एक पेंड को कांटने की खुली बोली निर्धारित की जा रही है। यह प्रस्ताव किसी भी कीमत पर पर्यावरण के हित में नहीं माना जा सकता है। इस सन्दर्भ में मंत्रालय का तर्क यह है कि यह प्रस्ताव मामूली उल्लंघन, छोटे अपराधों का शीघ्र समाधान निकालना और नागरिकों के उत्पीड़न को रोकने के लिए है। वन अधिनियम में संशोधन करके अलग दंड प्रावधानों को शामिल करना आवश्यक है।
केंद्र सरकार ने 2020-21 की एक रिपोर्ट को सार्वजनिक कर जानकारी दी है कि वन अधिनियम के तहत 30 लाख 97 हज़ार 721 पेंड काटे गये थे। कटान के सापेक्ष वनीकरण पर 359 करोंड़ रुपये खर्च करने का भी दावा किया है। पेंड़ों को बड़ी संख्या में काटने वाले राज्यों में मध्य प्रदेश पहले पायदान पर है उत्तर प्रदेश और ओडिशा दुसरे और तीसरे स्थान पर हैं। जानकारी से ज्ञात हुआ है कि मध्य प्रदेश 16 लाख 40 हज़ार 532, उत्तरप्रदेश में 3 लाख 11 हज़ार 998, ओडिशा में 2 लाख 23 हज़ार 375 पेंड़ों को काटा गया था। संभवतः इन पेंड़ों को काटने की अनुमति जिम्मेदारों ने ही दी होगी। इन आंकड़ों में अवैध रूप से हरे पेंड़ों की कटान के आंकड़े निश्चित रूप से चिंताजनक ही होंगें जो सार्वजानिक नहीं किये गये हैं। नकारात्मकता से इतर एक सुखद पहलू यह भी है कि केंद्र सरकार सहित अन्य राज्य सरकारों ने वर्ष 2022 के अंतर्गत वृक्षारोपण को जन आन्दोलन का सफल रूप दिया जिसके परिणामस्वरूप जनसहभागिता के साथ बड़े पैमाने में वृक्षारोपण संभव हुआ। निशाजनक पहलू अवैध कटान का है। यदि कानून कठोर न होगा तो बड़े से बड़े आन्दोलन सार्थक परिणामों को हासिल न कर पायेंगें। भारतीय वन अधिनियम 1927 में संशोधन कर उसे हल्का नहीं वरन कठोर बनाये जाने की आवश्यकता है। 

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