पालमपुर। पूर्व केन्द्रीय मंत्री शान्ता कुमार ने वरिष्ठ पत्रकार डा. वेदप्रताप वैदिक के निधन को देश के लिए अपूरणीय क्षति बताया है। उन्होंने कहा कि मेरा सौभाग्य था कि लम्बे समय से उनसे सम्पर्क रहा और कई कार्यक्रमों में उनके साथ जाने का मौका मिला। उन्होंने कहा कि डा. वैदिक ने हिन्दी के लिए 13 साल की उम्र में सत्याग्रह किया था और पटियाला जेल में बंद रहे। बाद में छात्र नेता और हिन्दी के आन्दोलनकारी के तौर पर कई बार जेल की यात्राएं कीं। एक दौर में उन्होंने राष्ट्रभाषा हिन्दी को लेकर देश की संसद को हिला दिया था।
शान्ता कुमार ने शनिवार को एक बयान में कहा कि डा. वैदिक जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में पीएचडी कर रहे थे। वे अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर अपना शोध ग्रंथ हिन्दी में लिखना चाहते थे लेकिन उनको अनुमति नही मिली। इस प्रश्न पर उन्होंने आन्दोलन किया और कहा कि देश की राष्ट्रभाषा पर मुझे शोध ग्रंथ लिखने और पीएचडी करने की अनुमति मिलनी चाहिए। मामला न्यायालय में गया। देश की ससंद में भी गूंजा। डा. राममनोहर लोहिया, अटल बिहारी वाजपेयी, मधु लिमये, चन्द्रशेखर, प्रकाश वीर शास्त्री, रामधारी सिंह दिनकर, डा. धर्मवीर भारती और डा. हरिवंशराय बच्चन जैसे विद्वानों ने उनका प्रबल सर्मथन किया। लोकसभा हिल गई। डा. वैदिक पहले भारतीय छात्र बने, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर हिन्दी में शोध लिख कर पीएचडी प्राप्त की। इस प्रकार उन्होंने भारत में एक नया इतिहास रचा।
उन्होंने कहा कि वे कई प्रमुख पत्रों के सम्पादक रहे। समाचार एजेंसी भाषा के संस्थापक संपादक रहे। उन्हें कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
शान्ता कुमार ने कहा कि मुझे भारतीय मीडिया से एक शिकायत है। किसी नेता या सिनेमा जगत के हीरो के निधन पर जिस प्रकार मीडिया में श्रद्धांजलि दी जाती है, डा. वैदिक जैसे विद्बान को उससे भी अधिक श्रद्धांजलि मिलनी चाहिए थी परन्तु मीडिया ने इस मामले में उनकी अनदेखी की। हिन्दी मीडिया को तो इस कमी को पूरा करना चाहिए था, जो नहीं किया गया। इस पर मुझे और भी दुख है।
राष्ट्रभाषा हिन्दी के लिए वैदिक ने संसद को हिलाया, श्रद्धांजलि में मीडिया ने नहीं दी पूरी जगह : शान्ता कुमार
