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तीर्थ क्षेत्र नैमिषारण्य के कब बहुरेंगे दिन-पूरे तीर्थ में जगह जगह लगा है गंदगी का अम्बार

When will the days of pilgrimage Naimisharanya end
Highlights "प्रदेश सरकार भले ही तीर्थ क्षेत्रों के विकास के बड़े बड़े दावे कर रही हो पर हकीकत इन सरकारी दावों से कोसों दूर है"

लखनऊ।प्रदेश की राजधानी से नब्बे किलोमीटर की दूरी पर सीतापुर जनपद में स्थित नैमिषारण्य क्षेत्र को भले ही सरकार ने नगर पंचायत घोषित कर रखा हो पर अभी तक इस नगर पंचायत में प्रशासनिक अधिकारी की नियुक्ति तक नही हो पाई जिससे पूरे तीर्थ क्षेत्र में गंदगी के साथ-साथ यहां के लोगो को मूलभूत सुबिधाये तक नही मिल रही है।

इस तीर्थ क्षेत्र के पंडा सत्यदेव श्रीमाली ने बताया कि इस तीर्थ क्षेत्र में राज राजेश्वरी त्रिपुरसुंदरी लिंगधारणी  मां ललिता देवी का प्रमुख स्थान है जिसका उल्लेख ललिता सहस्त्र में मिलता है। भगवान शंकर की दस महाविद्याओं में से एक माँ ललिता का वास है। शारदीय व चैत्र नवरात्रि व हर माह की गुप्त नवरात्रि में दूर दूर से साधक यंहा आकर माँ ललिता देवी की साधना करते हैं। अलग-अलग शक्ति पीठ में जाकर  साधक अपनी कामना कहते हैं। वह कामना मां ललिता से  एक ही साथ में पूर्ण हो जाती है। भक्त  अपनी कामना मां ललिता से कहते हैं और पूर्ण हो जाने पर अपने घर से ही दंडवत करते आते हैं। मां ललिता जी ने  शक्ति का संचार किया है और ब्रह्मा विष्णु महेश को उत्पन्न किया है। जहां पर माता विराजमान है वहां कभी  त्रिकूटा नाम का पर्वत  हुआ करता था। जहां माता  तपस्या करती थी और भगवान शंकर के साथ विराजम दसमहाविद्या की पूजा करते हैं। वह  ललिता की भी   सर्वप्रथम आराधना करते हैं। संतान विवाह यश कीर्ति सौभाग्य से पर पूर्ण करने वाली मैया भक्त यहां से निराश नहीं होता है। हर महीने की अमावस्या में यहां पर लाखों की तादाद में मेला होता है। चक्र तीर्थ में स्नान कर कर  माता के दर्शन करने के पश्चात हवन पूजन  अपने अपने घर को प्रस्थान करते हैं।

 नैमिषारण्य तपोभूमि  अठ्ठासी हजार ऋषियों की तपोभूमि पूरे विश्व में विख्यात है। सनातन  धर्म  का सबसे बड़ा तीर्थ है। श्रष्टि के प्रथम पुरुष महराज मनु शतरूपा की  तपोस्थली है।

साध्वी रुक्मणी का कहना है कि शासन ने भले ही इस तीर्थ क्षेत्र को मिश्रित नैमिषारण्य  नाम से नगर पंचायत बना दी हो पर इस नगर पंचायत में प्रशासनिक अधिकारी की नियुक्ति न होने से पूरे क्षेत्र में अनेक समस्यायों के साथ ही पूरे क्षेत्र में  डेंगू मलेरिया अपने चरम सीमा पर फैला हुआ है। नैमिष के साथ सौतेला व्यवहार होता है। यहां की बस्तियां  बहुत ही गंदी है और जगह-जगह कूड़ा फैला रहता है। दवाई का छिड़काव नहीं हो रहा है। ऊंची बस्तियों में  पानी तक नहीं पहुंचता है। पानी टंकी का मोटर अभी भी  नहीं बना है जिससे ऊंची बस्तियों में लोग परेशान हैं। बच्चे जो स्कूल जाते हैं उनको कठिन  परिश्रम करना पड़ता है। नालियां  गंदगी से भरी हूं  जिससे कि मच्छरों के  लावा फूट रहे हैं और वही मच्छर घरों मे घुसकर  लोगों को बीमार कर रहे हैं। कब तक नैमिषारण्य के साथ सौतेला व्यवहार होता रहेगा। पूरे 5 वर्ष में  यहां की भाजपा की चेयरमैन सरला देवी  झांकने तक नहीं है।

"महत्व नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र का"

नैमिष तीर्थ क्षेत्र वह भूमि जहाँ पर अठासी हजार ऋषि मुनियों ने तपस्या करने के साथ ही कई महा पुराण भी  लिखे गये हैं। तभी तो गोस्वामी तुलसी दास ने श्री रामचरित मानस में इस तीर्थ क्षेत्र का कुछ यूं वार्डन किया है। "तीरथ   वर    नैमिष   विख्याता। अति पुनीत साधक सिधि दाता।।" इसी तरह आदि कवि महर्षि बाल्मीकि ने अपनी वाल्मीक रामायण में भी उल्लेख किया है "वाल्मीकि-रामायण में "नैमिष" नाम से उल्लिखित इस स्थान के बारे में कहा गया है कि श्री राम ने गोमती नदी के तट पर अश्वमेध यज्ञ सम्पन्न किया था- "ऋषियों के साथ लक्ष्मण को घोड़े की रक्षा के लिये नियुक्त करके रामचन्द्र जी सेना के साथ नैमिषारण्य के लिए प्रस्थित हुए।" महाभारत के अनुसार युधिष्ठिर और अर्जुन ने इस तीर्थ-स्थल की यात्रा की थी। "आइने अकबरी" में भी इस स्थल का वर्णन मिलता है। हिन्दी साहित्य के गौरव महाकवि नरोत्तमदास की जन्म-स्थली "बाड़ी" भी नैमिषारण्य के समीप ही स्थित है।"

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