सॉफ्ट पुलिसिंग, पुलिसिंग के गैर-अनिवार्य तत्वों पर ध्यान केंद्रित करती है, जहां सामुदायिक जुड़ाव,
स्थित ज्ञान और बातचीत का उपयोग सामाजिक बुराइयों से लड़ने
के लिए शक्तिशाली उपकरण के रूप में किया जाता है। जनता को अवैध गतिविधियों से बाहर
निकालने के लिए भावनात्मक बुद्धिमत्ता और प्रेरक कौशल के नैतिक पहलुओं की आवश्यकता
होती है। नैतिक रूप से, यह
सुधारात्मक न्याय के सिद्धांत पर निर्भर करता है, जिसमें अपराधी का पुनर्वास उसके नैतिक दृष्टिकोण में सुधार करके किया जाता
है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के साथ ही यह मान लिया गया कि प्रशासनिक मशीनरी अपने आप
लोकोन्मुख हो जाएगी। लेकिन जब राजनीतिक सत्ता का चरित्र ही खास नहीं बदला तो
नौकरशाही या पुलिस का कैसे बदलती। पुलिस सुधार, केवल 21वीं सदी की ज़रूरत
नहीं है बल्कि आज़ादी के बाद से ही इसमें सुधार की गुंजाइश थी जो समय के साथ और
बढ़ती चली गई। “एक मज़बूत समाज अपनी पुलिस की इज्ज़त करता है और उसे सहयोग देता है, वहीं एक कमज़ोर समाज पुलिस को अविश्वास से देखता
है और प्राय: उसे अपने विरोध में खड़ा पाता है”।
आज हमें सॉफ्ट पुलिसिंग की आवश्यकता क्यों है? एनसीआरबी की रिपोर्ट 2020 में विभिन्न अपराधों में तेजी से वृद्धि पर प्रकाश डाला गया है, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध पुलिसिंग के पारंपरिक तरीकों की प्रभाव-शून्यता को दर्शाता है। व्यापक स्तर पर नशीली दवाओं और मनोदैहिक पदार्थों का उत्पादन, तस्करी और सेवन, समाज के नशे में योगदान करते हैं। समाज में मनोवृत्ति परिवर्तन यह सुनिश्चित करेगा कि हमारी अगली पीढ़ी किस प्रकार समाजीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से अच्छे मूल्यों और नैतिकताओं को विकसित करेगी। अहिंसा के माध्यम से हिंसा का मुकाबला करना, उदाहरण के लिए- पूर्वोत्तर में आतंकवादियों के आत्मसमर्पण-सह-पुनर्वास की योजना की तरह समाज में व्यवहार में बदलाव लाने के लिए सॉफ्ट पुलिसिंग का लाभ उठाया जा सकता है।
युवाओं को शिक्षा, रोल मॉडल और अन्य माध्यमों से प्रेरित करके नशीले पदार्थों, अपराधों और अन्य कुप्रथाओं से बाहर निकालना साथ ही, रचनात्मक गतिविधियों में उनकी आर्थिक भागीदारी सुनिश्चित करने से सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन आ सकता है। कार्रवाई उन्मुख अभियान के माध्यम से पुलिस व्यापक स्तरीय सामाजिक जागरूकता फैला सकती है। पुनर्वास अभियान का क्रियान्वयन करना, जैसे- तेजस्वी सतपुते (पुलिस कप्तान, सोलापुर ग्रामीण) ने सितंबर 2021 में ‘ऑपरेशन परिवर्तन’ शुरू किया, जो कि एक चार-सूत्रीय कार्य योजना थी, जिसमें शराब की भट्टियों (हाथ भट्टियों) पर एक ठोस कार्रवाई के साथ परामर्श जैसे सॉफ्ट पुलिसिंग तरीके को भी जोड़ा गया। संवैधानिक कर्तव्यों के बारे में सामाजिक चेतना जैसे "भारत के सभी लोगों के बीच सद्भाव और समान भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना"।
यदि कोई अपराधी, न्यायालय द्वारा अपराध मुक्त हो जाता है तो जनता यही सोचती है कि ये सब कुछ पुलिस की निष्क्रियता व नाकामियों की वजह से ही संभव हुआ है। उन्हें इस बात का जरा भी ज्ञान नहीं होता है कि इस पूरी आपराधिक न्याय प्रणाली जिसमें अभियोजन पक्ष, (सरकारी वकील) व न्यायालय भी शामिल हैं जो अपराधी को कई प्रकार की छूट देकर उसे अपराध मुक्त कर देती है। आखिर क्या कारण है कि हर व्यक्ति चाहे बुद्धिजीवी लोग, चाहे पत्रकार, फिल्म निर्माता हो, चाहे न्यायपालिका, पुलिस को हमेशा नकारात्मक दृष्टि से देखते हैं। राजनीतिज्ञ तो पुलिस को अपना हथियार बनाकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते ही रहते हैं तथा समाज की सेवा व सुरक्षा के लिए व्यवस्थित की गई पुलिस हर जगह अपनी भद्द पिटाती रहती है। इसका मुख्य कारण यही रहा है कि समाज के लोगों, विशेषत: गांवों, कस्बों व शहरों में जाकर पुलिस ने अपनी स्थिति, लाचारी, कानूनी जिम्मेदारियों इत्यादि से जनता को कभी भी अवगत नहीं करवाया।
ऐसे में हार्ड पुलिसिंग से सॉफ्ट पुलिसिंग पर फोकस करने के लिए महिलाओं को पुलिस में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करने के साथ-साथ पुलिस बलों को संवेदनशील बनाना होगा। व्यावसायिक प्रशिक्षण, कोमल व्यवहार और परिष्कृत शब्दावली जैसे सॉफ्ट स्किल्स का विकास करना होगा। समस्या समाधान का दृष्टिकोण यानी गांधी जी के नैतिक सिद्धांतों का पालन करते हुए, "पाप से घृणा करो पापी से नहीं" का आदर्श व्यवहार में अपनाना होगा। पुलिस कर्मियों के लिए, सेवा भाव (कर्तव्य की भावना) प्रेरक शक्ति होनी चाहिए न कि सत्ता का अहंकार। पुलिस को आम जनमानस को अपने साथ लाने की आवश्यकता है तभी बिना वर्दी के सतर्क नागरिक पुलिस की ढाल बन कर उनके सच्चे हमसफर, हमदर्द व हमराज बनकर पुलिस के चाल, चरित्र व चेहरे में निखार लाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
इस संबंध में पुलिस को भी अपना नजरिया बदले की आवश्यकता है। पुलिस जनों को नहीं भूलना चाहिए कि उनके रैंक से बढ़कर उनकी इंसानियत ज्यादा महत्व रखती है। उन्हें नहीं भूलना चाहिए कि उनको विरासत में मिले दागदार चेहरे को स्वच्छ व सुंदर बनाने के लिए जनता रूपी साबुन व शैंपू लगाने की जरूरत है अन्यथा वे अपने तथाकथित धूमिल व दागदार चेहरे को लेकर इसी तरह ही भटकते रहेंगे तथा जनता उन्हें दुत्कारती ही रहेगी। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 38 के तहत, लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए एक सामाजिक व्यवस्था को सुरक्षित करना, राज्य का संवैधानिक कर्तव्य है। इस प्रकार, हमें सभी के लिए सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक न्याय हासिल करने के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नरम और सख्त पुलिसिंग सहित सभी साधनों का पता लगाना चाहिए।