मोदी 3.0 का पहला बजट देश और दुनिया के सामने जबसे आया है तब से इस बजट को देखकर चीन की रातों की नींद उड़ी हुई है। इस बजट में चूँकि केंद्र सरकार ने कॉरपोरेट टैक्स में बड़ी कटौती की है। जिससे कारण विदेशी कंपनियों को भारत में पैसा लगाने या यूं कहें निवेश करने में मदद मिलेगी। साथ ही भारत को दुनिया की सबसे बड़ी फैक्ट्री बनाने में यह फैसला काफी योगदान कर सकता है। वास्तव में सरकार ने ये फैसला विदेशी कंपनियों को रिझाने के लिए लिया है। ताकि वो चीन को छोड़ भारत में ज्यादा निवेश करें। साथ ही ग्लोबल सप्लाई चेन चीन से शिफ्ट होकर भारत से जुड़ जाए।
उम्मीद की जा रही है कि ये बजट सरकार के 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी के टारगेट को हासिल करने में काफी मददगार साबित हो सकता है। साथ ही विदेशी कंपनियों के लिए टैक्स कटौती से इस प्रयास में काफी मदद मिल सकती है। यह बजट भारत को ग्लोबल इकोनॉमिक प्लेयर बनने में मदद करेगा, जिसमें एफडीआई को आकर्षित करने पर जोर दिया गया है। खुद को ग्लोबल फैक्ट्री या यूं कहें कि ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग सेंटर के रूप में स्थापित करके, भारत न केवल अपने लोकल मार्केट्स के लिए उत्पादन करना चाहता है बल्कि दुनिया के लिए भी प्रोडक्शन करना चाहता है।
सीतारमण ने इस वित्त वर्ष के लिए बजट की घोषणा करते हुए कहा कि देश की जरुरत के हिसाब से विदेशी पूंजी को आकर्षित करने के लिए मैं विदेशी कंपनियों पर कॉर्पोरेट टैक्स को 40 फीसदी से घटाकर 35 फीसदी करने का प्रस्ताव करती हूं।
बजट में विदेशी कंपनी की इनकम (विशेष दरों पर लगने वाली आय के अलावा) पर लगने वाले टैक्स की दर को 40 फीसदी से घटाकर 35 फीसदी करने का प्रस्ताव किया गया है। हिंदुजा ग्रुप ऑफ कंपनीज (इंडिया) के चेयरमैन अशोक हिंदुजा ने मीडिया रिपोर्ट में कहा कि टैक्सेशन में कुछ बदलावों की घोषणा की गई है, जिस पर विस्तार से अध्ययन की जरूरत है, जबकि विदेशी कंपनियों पर टैक्स में कमी के साथ एफडीआई के ज्यादा आने की उम्मीद है।
खेतान एंड कंपनी की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर डायरेक्ट टैक्स विनीता कृष्णन ने कहा टैक्स कटौती के साथ, विदेशी कंपनियों पर लगने वाला हाईएस्ट टैक्स 43।7 फीसदी से घटकर लगभग 38 फीसदी हो गया है। कृष्णन ने कहा, यह टैक्स कटौती भारत में मौजूद विदेशी कंपनियों, जैसे बैंक ब्रांचेस और इंफ्रा कंपनियों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है।
जब पूरी दुनिया की नजर दक्षिण एशिया पर टिकी हुई है। साथ ही दुनिया की बड़ी कंपनियां चीन का विकल्प तलाश करने में जुटी हुई हैं। ऐसे में भारत अपने आपको दुनिया के सामने चीन का ऑप्शन बताने का प्रयास कर रहा है। सरकार का लक्ष्य अगले सात सालों में सालाना 110 अरब डॉलर का एफडीआई आकर्षित करना है, जबकि पिछले पांच वर्षों में यह औसतन 70 अरब डॉलर से अधिक है। बजट में अधिक विदेशी धन आकर्षित करने, प्राथमिकता तय करने और विदेशी निवेश के लिए करेंसी के रूप में भारतीय रुपए का उपयोग करने के अवसरों को बढ़ावा देने के लिए एफडीआई के लिए रूल्स और रेगुलेशन को आसान बनाने का प्रयास किया गया है।
मेक इन इंडिया, इंडस्ट्रीयल कॉरिडोर डेवलपमेंट प्रोग्राम, पीएलआई, भारत सेमीकंडक्टर मिशन और नेशनल लॉजिस्टिक पॉलिसी जैसे इनिशिएटिव ने विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने में काफी अहम योगदान दिया है। भारत ने मैन्युफैक्चरिंग सेंटर के रूप में अपनी महत्ता को पूरी दुनिया के सामने रखने की पूरी कोशिश की है। यही वजह है कि इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोटिव और इंजीनियरिंग सेक्टर के कई प्लेयर्स ने भारत में निवेश करने का ऐलान किया है।
एनए शाह एसोसिएट्स के पार्टनर धवल सेलवाडिया ने मीडिया रिपोर्ट में कहा कि इस कदम (विदेशी कंपनियों पर कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती) का प्रमुख उद्देश्य भारत को विदेशी निवेशकों के लिए बेहतर डेस्टिनेशन बनाना है। ताकि भारत में ज्यादा से ज्यादा निवेश आने से जॉब क्रिएट हों। कम टैक्स से भारत को दूसरे उभरते बाजारों के साथ प्रतिस्पर्धा करने और अधिक व्यापार-अनुकूल माहौल को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।
भारत ने हाल ही में एपल और फॉक्सकॉन से लेकर विनफास्ट और स्टेलेंटिस जैसी कई कंपनियों को भारत में अपनी निवेश घोषणाओं को करने के लिए मजबूर किया है। वहीं दूसरी ओर टेस्ला और दुनिया की बाकी बड़ी कंपनियों को भी रिझाने का प्रयास कर रही हैं। वहीं दूसरी ओर इन कंपनियों को भी पता है कि मौजूदा समय में भारत ही चीन का दूसरा सबसे बड़ा विकल्प है। जहां पर आबादी के साथ—साथ खर्च करने की क्षमता भी है।
इसे एक उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं। फॉक्सकॉन भारत में निवेश और व्यापार साझेदारी को दोगुना कर रहा है। कंपनी अब चीन से बाहर अपनी सप्लाई चेन को बढ़ाने के बारे में सोच रही है। जिसके लिए कंपनी ने इस साल की शुरुआत में चेन्नई इंडस्ट्रियल पार्क में लगभग 550,000 वर्ग फुट वेयरहाउसिंग की जगह 10 साल के लिए लीज पर ली है। इसे एपल प्रोडक्ट्स के लिए निर्माण के लिए भारत में सबसे बड़ी यूनिट में से एक कहा जा सकता है।
बजट से पहले आए हुए इकोनॉमिक सर्वे में भी इस बात का जिक्र किया गया था कि भारत अपने आपको चीन के विकल्प के रूप में तैयार करने में जुट गया है। जिसकी वजह से वह ग्लोबल कंपनियों को भारत आने के लिए आमंत्रित कर रहा है। सरकार ने भारत को ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग सेंटर के रूप में स्थापित करने के लिए जो महत्वाकांक्षी योजना की रूपरेखा तैयार की है, उससे रोजगार के कई अवसर पैदा होंगे।
विदेशी कंपनियों के लिए हालिया कर कटौती से इस सपने को और बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। विदेशी कंपनियों के लिए कर में कटौती भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) द्वारा जून में रिपोर्ट किए जाने के बाद हुई है कि एशियाई राष्ट्र में शुद्ध विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) का प्रवाह पिछले वित्तीय वर्ष में 62 फीसदी गिरकर 2007 के बाद सबसे निचले स्तर पर आ गया है।
भारत का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर ग्रोथ की ओर है और दुनिया तेजी से चीन+1 पॉलिसी के साथ आगे बढ़ रही है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इसका फायदा उठाने और भारत को एक ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग सेंटर के रूप में विकसित करने के लिए, सरकार को पीएलआई योजना, कम कॉर्पोरेट में कटौती, कस्टम ड्यूटी पर एक ब्रॉडर और फ्लेक्सिबल रुख अपनाने की जरुरत है।
वहीं दूसरी ओर बजट ने लोकल कंपनियों के कॉरपोरेट टैक्स में कोई बदलाव नहीं और 22 फीसदी ही रखा है। कॉरपोरेट रेट में कटौटी की मांग कंपनियों की ओर से लगातार की गई है। ताकि निवेश को बढ़ावा मिले और जॉब के अवसर पैदा हों। हालांकि, कॉर्पोरेट रेट में कटौती से देश के खजाने पर ऐसे समय में असर पड़ा होगा जब सरकार 2025-26 तक बजट घाटे को जीडीपी के 4।5 फीसदी से नीचे लाना चाहती है।2019 में लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार ने अंतरिम बजट में 400 करोड़ रुपए तक के सालाना टर्नओवर वाली कंपनियों के लिए कॉरपोरेट टैक्स को 30 फीसदी से घटाकर 25 फीसदी करने का प्रस्ताव रखा था।
देश के भीतर काम करने वाली कंपनियों के मुनाफे पर लगाया जाने वाला कॉर्पोरेट टैक्स, राजस्व का एक प्रमुख स्रोत है और भारत को अपने बजट घाटे के लक्ष्य को पूरा करने में मदद करने के लिए महत्वपूर्ण है। सामाजिक क्षेत्र और कल्याणकारी योजनाओं से लेकर बुनियादी ढांचे के विकास तक की सरकारी योजनाओं को चलाने के लिए भी इस धन को उपयोग में लाया जाता है।