कुपोषण से जंग-एक जन आन्दोलन

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राधेश्याम पाल, सी. डी. पी. ओ. राज्य नोडल अधिकारी-पोषण

बच्चों में उम्र के अनुसार अल्प वजन, बौनापन, नाटापन तथा महिलाओं व किशोरियों में खून की कमी का पाया जाना कुपोषण कहलाता है। बच्चों एवं महिलाओं में पोषण की कमी से स्वास्थ्य सम्बन्धी जटिलताएँ पायी जाती है। बच्चों में उनका शारीरिक, मानसिक व बौद्धिक विकास प्रभावित होता है तथा महिलाओं में खून की कमी, जिसे एनिमिया कहा जाता है, इससे गर्भधारण सम्बन्धी जटिलताएँ उत्पन्न होती हैं और शिशु मृत्यु दर एवं मातृत्य दर में बढ़ोत्तरी होती है।

कुपोषण एक चक्र की तरह है जिसमें कुपोषित मॉ कमजोर बच्चे को जन्म देती है कुपोषित बच्चा आगे चलकर माता-पिता के रूप में कुपोषित बच्चे को जन्म देता है। जिससे कुपोषण का यह चक्र चलता रहता है। कुपोषण के चक्र को तोडने के लिए समन्वित प्रयास की जरूरत है। इस दिशा में भारत सरकार राज्य सरकारों के साथ मिलकर लगातार समन्वित प्रयास कर रही है। राष्ट्रीय स्तर पर पिछले 7 वर्षों से ‘सम्भव अभियान’ एक जन आन्दोलन के रूप में पूरे राष्ट्र में चलाया जा रहा है जिसमें महिला एवं बाल विकास विभाग नोडल विभाग है, तथा अन्य कन्वर्जेन्स विभागों के साथ मिलकर कुपोषण समाप्त करने का व्यापक अभियान चला रहा है। अभियान में बच्चों में पोषण की कमी को दूर करना, साफ-सफाई, सही पोषण की जानकारी देना, महिलाओं में खून की कमी की जांच व उपचार कर उन्हें कुपोषण से बाहर लाने का प्रयास जारी है। खाद्य रसद विभाग निःशुल्क खाद्य सामग्री जनता तक पहुँचा रहा है। कुपोषण में साफ-सफाई, सही पोषण व साफ पेयजल की आवश्यकता होती है। भारत सरकार हर घर नल-जल की व्यवस्था कर स्वच्छ पेयजल की सभी तक करा पहॅुच रही है।

कुपोषण मुक्त उत्तर प्रदेश की संकल्पना के साथ प्रदेश में माननीय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्य नाथ ने सातवें राष्ट्रीय पोषण माह का शुभारम्भ विगत 4 सितम्बर 2024 को लखनऊ में किया। बच्च्चों में कुपोषण, विकसित भारत 2047 की संकल्पलना में बाधक है। इससे मुक्ति पाने के लिए प्रदेश के 1.72 लाख आंगनबाडी केन्द्रों के माध्यम से पोषण माह मनाया जा रहा है। इस वर्ष पोषण माह की मुख्य थीम बच्चों एवं महिलाओं की विधिवत निगरानी, एनिमिया टेस्ट, ट्रीट, टाट, ऊपरी आहार, स्तनपान एवं प्रौद्योगिकी पर फोकस किया गया है। इसके तहत प्रदेश के 75 जनपदों में पोषण माह 1 सितम्बर 2024 से 30 सितम्बर 2024 तक चलाया जाना है। आंगनबाड़ी केन्द्रों व कन्वर्जेन्स विभागों द्वारा ग्राम पंचायत स्तर पर पोषण रैली, पोषण गोष्ठी, मोटे एवं स्थानीय अनाजों का रेसीपी प्रदर्शन, अन्नप्राशन, गोदभराई सामुदायिक गतिविधियों एवं वी०एच०एस०एन०डी० सत्रों पर जो कि प्रत्येक बुधवार और शनिवार को मनाया जाता है। अधिक से अधिक किशोरियों, महिलाओं एवं कमजोर बच्चों का टेस्ट- ट्रीट कर उन्हें सुपोषित बनाने का अभियान चलाया जा रहा है। अब तक प्रदेश में आंगनबाड़ी केन्द्रों पर पोषण माह के दौरान 64,13,489.00 पोषण गतिविधियां जन जागरूकता हेतु चलायी गईं है और poshanbhiyan.com जन आन्दोलन पोर्टल पर इसे फीड भी किया गया है। जिसे जन सामान्य भी देख सकते हैं।

माह सितम्बर में हर साल मनाये जाने वाला राष्ट्रीय पोषण माह कुपोषण दूर करने में कारगर साबित हो रहा है। राष्ट्रीय पोषण माह के दौरान बच्चों एवं महिलाओं की वृद्धि ,निगरानी, उपचार एवं सामुदायिक व्यवहार परिवर्तन एक जन आन्दोलन के रूप में आंगनबाड़ी केन्द्रों के माध्यम से संचालित है। ग्रामीण स्तर पर स्वास्थ्य सम्बन्धी स्वच्छ व्यवहार को अपनाने के लिए हेल्थ कैम्प का आयोजन कर जनता को जागरूक किया जा रहा है। पंचायती राज विभाग व्यापक स्तर पर हर घर शौचालय एवं सामुदायिक शौचालय तथा साफ-सफाई के प्रति जागरूकता कार्यक्रम चलाकर कुपोषण मिटाने में व्यापक भूमिका अपना रहा है।

महिला एवं बाल विकास विभाग कुपोषण कम करने का सार्थक प्रयास आंगनबाडी केन्द्रों के माध्यम से कर रहा है। इसके तहत सामुदायिक व्यवहार परिवर्तन हेतु ग्रामीण स्तर पर सामुदायिक गतिविधियों यथा अन्न प्राशन्न एवं गोद नराई जैसे कार्यक्रम प्रतिमाह आंगनबाडी केन्द्रों पर आयोजित किये जाते है। बच्चों में पोषण की कमी दूर करने हेतु पूरक आहार दिया जाता है। इसके अतिरिक्त आंगनबाडी केन्द्रों और बेसिक विद्यालयों में पढ़ने बाले बच्चों को साल में लगभग 300 दिन गरम पकाया भोजन मिड-डे-मिल के रूप में दिया जाता है। इसके अतिरिक्त ग्रामीण स्तर पर माह में वी ०एच०एन०टी० सत्र प्रत्येक बुधवार/शनिवार को जायोजित किये जाते है जिसमें आत्ता, आंगनबाडी एवं ए०एन०एम० के सम्मिलित प्रयाप्त से महिलाओं एवं बच्चों का स्वास्थ्य जांच एवं उपचार किया जाता है। ग्रामीण स्तर पर सामुदायिक हेल्थ सेन्टर के माध्यम से लोगों को स्वस्थ रहने के प्रति जागरुक एवं उपचारित किया जा रहा है।

कुपोषण न केवल गरीबी से जुड़ा है बल्कि यह समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों, सामुदायिक व्यवहार व आदतों से भी जुड़ा है। अतः इसे समन्वित प्रयास एवं व्यापक स्तर पर जन जागरूकता कार्यक्रम चलाकर ही कम किया जा सकता है। सरकारी प्रयास इस दिशा में काफी सार्थक सिद्ध हो रहे है। लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ी है एवं उनके व्यवहार और आदतों में भी परिवर्तन देखने को मिल रहा है , किन्तु अभी सतत प्रयास करने की बहुत जरूरत है।

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