महाराष्ट्र में चुनाव की घोषणा 29 नवम्बर से पहले- घोषणा के पहले ही होगा कोई बड़ा खेला

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ताजा समाचारों के अनुसार महाराष्ट्र में इस साल 29 नवम्बर के पहल विधानसभा चुनाव की घोषणा होनी है और चुनावों की घोषणा से पहले सत्ताधारी महायुति के घटक दलों में सीट बंटवारे की प्रक्रिया अब रफ्तार पकड़ रही है। गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में भारतीय जनता पार्टी और सहयोगी दलों के प्रमुख नेताओं के साथ बैठक कर सीट शेयरिंग, विधानसभा चुनाव के लिए रणनीति पर चर्चा की थी। अमित शाह ने एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना और अजित पवार की अगुवाई वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को सम्मानजनक संख्या में सीटें देने का आश्वासन दिया। लेकिन पिछले कुछ दिनों से अजित पवार बदले-बदले से नजर आ रहे हैं।

अजित की पार्टी महायुति में शामिल हुई तो उसके पीछे डिप्टी सीएम और महाराष्ट्र भाजपा के सबसे बड़े चेहरे देवेंद्र फडणवीस के साथ उनकी नजदीकी के भी चर्चे रहे लेकिन पिछले कुछ दिनों में दोनों नेताओं के बीच दूरियों की चर्चा जोरों पर रही है। इस तरह की चर्चा को लाड़ली बहिन योजना को लेकर छिड़े क्रेडिट वॉर ने भी और हवा दे दी।

एनसीपी ने सोशल मीडिया पर एक विज्ञापन जारी कर कहा था कि लाड़ली -बहिन योजना के तहत अजित पवार पैसे दे रहे हैं। इसमें कहीं भी सीएम शिंदे या डिप्टी सीएम फडणवीस का जिक्र नहीं था। इसके बाद भाजपा की ओर से बड़ी-बड़ी होर्डिंग्स लगवाई गई थीं जिन पर प्रधानमंत्री मोदी और सीएम शिंदे की छोटी-छोटी तस्वीरों के साथ देवेंद्र फडणवीस की बड़ी फोटो छपी थी। इन होर्डिंग्स पर अजित की न तो फोटो थी और ना ही कहीं नाम। ये होर्डिंग्स अजित पवार के इलाके बारामती के साथ ही वहां भी लगाई गईं, जिन्हें एनसीपी का गढ़ माना जाता है।

बाद में शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी की तल्खी भी पिछले कुछ दिनों में खुलकर सामने आने लगी । तानाजी सावंत से लेकर गुलाबराव पाटिल तक, शिंदे सरकार में शिवसेना के मंत्री अजित पवार को टार्गेट करने का कोई मौका नहीं चूक रहे। सावंत ने अजित पर निशाना साधते हुए कहा था कि जीवनभर कांग्रेस और एनसीपी के विरोध की राजनीति की है। कैबिनेट में उनके बगल में बैठता हूं लेकिन बाहर आने के बाद उल्टी आती है।

वहीं, मंत्री गुलाबराव ने भी हाल ही में वित्त विभाग को सरकार का सबसे बेकार विभाग बताया था। कहा तो ये भी जा रहा है कि अजित के वित्त मंत्री होने को ही आधार बनाते हुए कई आरोप लगा शिंदे की अगुवाई में बगावत कर एमवीए सरकार गिराने वाले शिवसेना विधायक सरकार में अजित को लिए जाने, वित्त मंत्री बनाए जाने के बाद से ही असहज महसूस कर रहे हैं।

अजित पवार के अलग ट्रैक पर दौड़ने के पीछे एक वजह सीट बंटवारे के पेच को भी बताया जा रहा है। महायुति में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है जिसे पिछले विधानसभा चुनाव में 105 सीटों पर जीत मिली थी। शिंदे की शिवसेना और अजित की एनसीपी, दोनों के ही 40-40 विधायक हैं। भाजपा 160 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है तो वहीं शिंदे की पार्टी ने भी 107 सीटों पर दावेदारी कर दी है। अजित पवार भी यह दावा कर चुके हैं कि उनकी पार्टी 60 से 67 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। सीट शेयरिंग के पेच को देखते हुए भी इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि महायुति से किसी एक दल की एग्जिट हो सकती है। लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद अजित पवार शिवसेना से लेकर संघ तक के निशाने पर हैं। ऐसे में हो सकता है कि वह सॉफ्ट टार्गेट बन जाएं।

दरअसल, एनसीपी और शिवसेना दोनों ही बगावत के बाद खुद को असली पार्टी बताते आए हैं। नाम-निशान की लड़ाई भी दोनों जीत चुके हैं लेकिन अब विधानसभा चुनाव में दोनों के सामने खुद को असली पार्टी के रूप में ले जाने की चुनौती भी है। 2019 के महाराष्ट्र चुनाव में भाजपा ने कुल 288 में से 164 और शिवसेना ने 126 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। वहीं, विपक्षी गठबंधन में एनसीपी के हिस्से 121 सीटें आई थीं। अब महायुति में शामिल हर दल चाहता है कि वह अपने पिछले चुनाव की पोजिशन बरकरार रखे।

बताया यह भी जा रहा है कि अजित पवार लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही काफी बदले बदले नजर आ रहे हैं। पहले तो नतीजे तो मनमाफिक नहीं ही आये थे ऊपर से केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री की पोस्ट न मिलने से निराश और भी बढ़ने लगी थी।

बहरहाल अजित पवार कभी यात्रा के बहाने तो कभी किसी कार्यक्रम में शामिल होने के कारण लगातार लोगों के बीच रहने को कोशिश कर रहे हैं, और बीच बीच में ऐसे बयान दे रहे हैं जिससे भाजपा पर दबाव बढ़ाया जा सके – राहुल गांधी के मामले में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की पार्टी के एक नेता का सरेआम विरोध, और महाराष्ट्र भाजपा के एक बड़े नेता का प्रोजेक्ट नामंजूर कराने में उनकी भूमिका तो यही कहती है कि किसी न किसी तरीके से वो अलग होने का बहाना खोज रहे हैं। बारामती से पत्नी सुनेत्रा पवार को चुनाव लड़ाये जाने के मामले में तो वो पहले ही अफसोस जता चुके हैं – और सच तो ये भी है कि संघ भी भाजपा के अजित पवार के साथ आने से खासा नाराज है।

महाराष्ट्र की बारामती लोकसभा सीट पर हुई पारिवारिक लड़ाई पर अजित पवार का अफसोस जताना तो चलेगा, लेकिन राहुल गांधी के आरक्षण पर आये बयान का सपोर्ट तो बिलकुल ही अलग मामला हो जाता है। अमेरिकी दौरे में राहुल गांधी के बयान पर काफी विवाद हुआ था। इंडिया ब्लॉक के कुछ नेताओं ने तो सपोर्ट किया था, लेकिन मायावती और भाजपा नेता तो धावा ही बोल दिये थे। और सबसे आगे तो एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना के विधायक संजय गायकवाड़ नजर आये। संजय गायकवाड़ ने तो सीधे सीधे राहुल गांधी की जीभ काटने वाले को 11 लाख रुपये का इनाम देने की ही घोषणा कर डाली। महाराष्ट्र कांग्रेस कार्यकर्ताओं का बुलढाणा थाने में संजय गायकवाड़ के खिलाफ शिकायत दर्ज कराना तो उनका हक बनता है, लेकिन अजित पवार की तरफ से इस मामले में नाराजगी जताया जाना तो हैरान ही करता है।

एनसीपी नेता अजित पवार ने संजय गायकवाड़ के बयान से इतने नाराज हुए कि वो उनको मर्यादा में रहने की नसीहत देने लगे। अजित पवार का कहना था, सभी को अपने विचार रखने का अधिकार है… ये अधिकार संविधान बनाने वाले बाबा साहेब अंबेडकर ने हमें दिया है, लेकिन कोई भी… सत्ताधारी हो, विरोधी हो या और कोई भी हो… जुबान पर नियंत्रण न रखने वालों को मर्यादा का पालन करना चाहिए।

जब भाजपा नेता ही नहीं बल्कि मायावती जैसी नेता भी राहुल गांधी के खिलाफ खड़े हों, ऐसे में अजित पवार का आगे बढ़ कर कांग्रेस नेता का पक्ष लेना, शक तो पैदा करता ही है। महाराष्ट्र में कांग्रेस विपक्षी गठबंधन महाविकास आघाड़ी का हिस्सा है, जिसमें अजित पवार के चाचा शरद पवार वाली एनसीपी भी शामिल है।

पुणे में एनसीपी की तरफ से संविधान सभा कार्यक्रम हुआ था। कार्यक्रम में अजित पवार का धर्मनिरपेक्षता की बात पर खास जोर दिखा था। ये ज्यादा खास इसलिए भी लगा क्योंकि महाराष्ट्र में भाजपा नेता हिंदुत्व और राष्ट्रवाद पर ज्यादा जोर दे रहे हैं। लेकिन अजित पवार की तरफ से ये साफ करने की कोशिश लगती है कि वो भाजपा के हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के एजेंडे से खुद को पूरी तरह अलग रखना चाहते हैं। एनसीपी नेताओं और कार्यकर्ताओं से बातचीत में अजित पवार कहते हैं, हमें राष्ट्रवाद के मामले में किसी प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं है… हम अपने संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रवाद के मूल्यों के साथ खड़े हैं।

निश्चित रूप से ये भाजपा नेतृत्व का अजित पवार की तरफ से साफ साफ संदेश है – पहली वजह तो ये महायुति से अलग रास्ता अख्तियार करने की ही लगती है, एक वजह सीटों के बंटवारे में दबाव बनाने की कोशिश भी हो सकती है।

चंद्रशेखर बावनकुले महाराष्ट्र भाजपा के अध्यक्ष हैं, और गठबंधन सरकार में अजित पवार के हिस्से वाले वित्त विभागव ने चंद्रशेखर बावनकुले से जुड़ी आवेदन की एक फाइल ही लौटा दी है। नतीजा ये हुआ है कि महाराष्ट्र कैबिनेट ने चंद्रशेखर बावनकुले की अध्यक्षता वाले एक सार्वजनिक ट्रस्ट को नागपुर में 5 हेक्टेयर जमीन के आवंटन के राजस्व विभाग के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक, 29 नवंबर, 2023 को ट्रस्ट की तरफ से कौशल विकास केंद्र के निर्माण के लिए जमीन मांगी गई थी।

महाराष्ट्र भाजपा अध्यक्ष बावनकुले का कहना है कि ट्रस्ट काफी पुराना है और वो सिर्फ दो साल तक ही उसके अध्यक्ष रहे हैं। कहते हैं, ये कोई व्यक्तिगत मामला नहीं है… मैं धार्मिक उद्देश्य के लिए काम कर रहा हूं… ये एक नेक काम है… ट्रस्ट जमीन की कीमत का भुगतान करेगा, और उसे लीज पर लेगा… ये मेरी निजी संपत्ति नहीं होगी।देखा जाये तो अजित पवार की तरफ से भाजपा को ये खुला चैलेंज ही है, लेकिन भाजपा भी काफी फूंक फूंक कर कदम बढ़ा रही है। जिस कैबिनेट ने इस प्रोजेक्ट को मंजूरी नहीं दी है, उसमें भाजपा के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस भी होंगे, और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी – फिर भी अजित पवार ने जो कदम उठाया है, सोच समझकर ही उठाया है ।सभी घटक दल कितना भी सोच समझकर कदम उठावे पर महाराष्ट्र की राजनीति की जानकारी रखने वालों के अनुसार चुनावी घोषणा के साथ कोई बड़ा खेला हो सकता है ।

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