मैंने अपने जीवन में बहुत सी महिलाओं को देखा है जिनकी कहानियां भले ही इतिहास के पन्नों में नहीं आएंगी, लेकिन उनकी जुबानी सुनी हुई उनके जीवन की कहानी बहुत ही दर्दनाक थी। मुझसे बात करने वाली महिलाएं, मुझसे अपनी कुछ तकलीफ बता जाती थी, उन्हें लगता था कि मैं उनके जीवन के बारे में अच्छा लिख सकती हूं।
आखिर! क्या होता है जब नारी का जीवन नर्क से बदतर हो जाता है, एक सफेद लिबास में लिपटी हुई नारी क्यों सबसे अलग दिखती है? क्यों उनके जीवन के रंग को बेरंग किया जाता है? यदि वह अपनी स्वेच्छा से विधवा जीवन व्यतीत करना चाहती है तो कोई बात नहीं है, लेकिन जो महिलाएं दोबारा विवाह करना चाहती है उनके लिए शर्तें क्यों रखी जाती है? मैंने बहुत-सी महिलाओं को देखा जिन्होंने पुनर्विवाह तो किया लेकिन कई बार उन्हें यह कहकर प्रताड़ित किया गया कि "पहला पति खत्म हो गया कुछ तो कमी होगी तुम्हारी किस्मत में।"
हमारे समाज में कुछ लोगों को तमगा दिया जाता है कि उस पर प्रहार करो जो सबसे कमजोर है, जब एक विधवा स्त्री जो कि अपने जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए नौकरी की तलाश में निकलती है, तो लोगों की घूरती नजरें उस पर एकाधिकार जमाने के लिए आतुर रहती है, उसके साथ अवैध संबंध बनाने के लिए कुछ पुरुष भी आतुर होते हैं। हम भारतवर्ष में देवियों को पूजते हैं फिर उसी देवी स्वरूप औरत की अस्मत को तार तार करने के लिए नजरें वहशी क्यों हो जाती है? क्या हम उन्हें मान सम्मान से जीने के लिए बिना कोई गलत बात रखते हुए उन्हें नौकरी नहीं दे सकते हैं? जरूरी है क्या कि जब किसी का स्वार्थ हो तो, उन्हें नौकरी के नाम पर प्रमोशन कर देना, उसे झांसे में लेना, फिर उसकी अस्मत लूट लेना उसका जीवन नारकीय कर देना! क्या यही भारतीय संस्कृति है? मुझे पता है जब एक विधवा औरत राह से चलती है तो कुछ रसिक लोग रोजाना उनका पीछा करते हैं, वह दिन भर में कहां कहां जाती है उसकी जासूसी करते है, फिर शुरू हो जाता है उस विधवा को झांसे में लेने का खेल।
समाज में इतनी संस्थाएं विधवाओं के लिए खोल दी गई है, पर क्या सच में उन्हें वह न्याय मिलता है? पहले जमाने में भेदभाव के साथ जो सलूक किया जाता था इससे कोई अनजान नहीं है। उनके सुंदर केश को काट दिया जाता था, उन्हें गंजा कर दिया जाता था, उनकी सुंदरता एक सफेद मटमैली साड़ी के घुंघट में छुप जाया करती थी, एक जगह ऐसी भी थी जिन परिवारों की महिलाएं विधवा हो जाया करती थी उन्हीं के घर की पुरुष उन पर गंदी नजर डालकर उनकी इज्जत बेआबरू कर दिया करते थे। सोचिए! क्या स्थिति रही होगी उस विधवा महिला की जो घर में ही रह कर ऐसी यातना को सहा करती थी और उसकी दर्द चीख-पुकार उसी घर में कैद होकर रह जाया करती थी, वह तकलीफ समाज के सामने ना आए तो उसे डरा धमका कर चुप करा दिया जाता था।
आज जमाना बदल चुका है पर आज भी विधवाओं की स्थिति अच्छी नहीं है, खास तौर पर उन विधवाओं जिनके बच्चे हैं, वह अपने बच्चों के लिए एक इज्जत वाली जिंदगी चाहती है, वह चाहती है उसे कोई तिरस्कृत ना करें, उसकी काबिलियत पर कोई सवाल ना करें, वो चाहती है चारदीवारी से निकलना, केवल अपने बच्चों के लिए वह चाहती है सफेद लिबास से एक रंगीन लिबास। जिसमें वह खुद को दर्द भरे माहौल से निकालना चाहती है। पर कई जगह पर देखा गया है कि विधवाओं को नेक कामों पर भी आमंत्रित नहीं किया जाता है, कई पूजा-पाठ ऐसी भी है जहां विधवाओं को जाने की मनाही है। जब एक सुहागन औरत खत्म होती है तो उसकी साड़ी को दूसरी महिलाएं यह कह कर देख लेती हैं कि वह भी जब मरे तो सुहागन मरे, लेकिन यदि कोई विधवा मरती है, तो उसकी साड़ी को कोई महिलाएं नहीं रखना चाहती है, आखिर क्यों? वो सफेद लिबास में लिपट ना चाहेंगी! क्योंकि वह जानती हैं सफेद लिबास एक आजीवन कारावास है।
मेरे ख्याल से उन विधवाओं के लिए सोचा जाए जो आज भी जद्दोजहद करती हैं, नई जिंदगी के लिए। उनके मन में भी यह ख्याल आता है कि वो द्वारा शादी करके अपने जीवन को सुंदर बना सके। इन के इस फैसले को रोकना नहीं चाहिए। और जिन विधवाओं की बच्चे हैं और वह पुनर्विवाह करना चाहती है, तो उनके बच्चों के साथ उन्हें अपनाने के लिए पुरुषों को सामने आना चाहिए, और यदि विधवा महिलाएं सुखी जीवन व्यतीत करना चाहती है तो उन्हें वो माहौल दीजिए, जहां पर उन्हें इस बात का डर ना सताए कि वह असुरक्षित है। उन्हें मान सम्मान देकर समाज को एक नया उदाहरण प्रस्तुत कीजिए, उन पर ताने और छींटाकशी न करें, उन्हें उस मुश्किल हालातों से निकाला जाना चाहिए जहां पर वह फंसी हुई है। उनकी परिस्थितियों का फायदा उठाकर उन पर अत्याचार करना, यह कोई संविधान में नहीं लिखा है! समाज को अपनी सोच का दायरा संकुचित ना रख कर एक विस्तार देना चाहिए। यदि लोग समाज सेवा करते हैं तो पहले ईन विधवाओं की स्थितियों को सुधारें, ताकि वह महिलाएं अपने जीवन में आने वाली सभी अड़चनों को पार करते हुए एक नया इतिहास बना पाए, तभी समाज एक सुदृढ़ व्यवस्था कायम कर सकता है। यदि वह पुनर्विवाह करना चाहती है तो उन्हें करने दीजिए, उनके जीवन में लगा विधवा नाम का तमगा हटाना समाज का पहला कर्तव्य है।