गोरखपुर। आज यानी 28 मई को गरु गोरखनाथ मंदिर के महंत अवैद्यनाथ की जयंती है। बचपन में भगवान ने इन्हें अनाथ कर दिया था। 28 मई 1921 को गढ़वाल (उत्तरा खण्ड) जिले के कांडी गांव में जन्मे राय सिंह विष्ट के इकलौते पुत्र कृपाल सिंह विष्ट के साथ ऐसा ही हुआ लेकिन इन्हें क्या मालूम कि ईश्वर ने इनके हाथों में सबका नाथ बनने की अमिट लकीरें खींच दी हैं। ये नाथ संप्रदाय के सबसे बड़े केंद्र गोरखनाथ मंदिर के महंत बन गये। आख़िरकार, ईश्वर ने इस ‘अनाथ’ को सबका ‘नाथ’ बना दिया। इन्हें कृपाल सिंह विष्ट के स्थान पर महंत अवैद्यनाथ का नाम मिल गया।
बचपन में माता-पिता, कुछ बड़े हुए तो पाल्य दादी की भी मौत हो गयी। मन विरक्त हो गया। सांसारिक दुनिया नीरस लगाने लगी। ऋषिकेश में सन्यासियों के सत्संग से हिंदू धर्म, दर्शन, संस्कृत और संस्कृति के प्रति रुचि जगी। फिर, शांति की तलाश में केदारनाथ, ब्रदीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री और कैलाश मानसरोवर की यात्रा की। वापसी में हैजा होने पर साथी उनको मृत समझ आगे बढ़ गए। वह ठीक हुए तो उनका मन और विरक्त हो गया। इसके बाद नाथपंथ के जानकार योगी निवृत्तिनाथ, अक्षयकुमार बनर्जी और गोरक्षपीठ के सिद्ध महंत रहे गंभीरनाथ के शिष्य योगी शांतिनाथ से वर्ष 1940 में भेंट हुई। निवृत्तनाथ ने इनकी मुलाक़ात महंत दिग्विजयनाथ से कराई। पहली भेट में इन्होंने शिष्य बनने की अनिच्छा जाहिर कर दी। लेकिन इस बीच करांची के एक सेठ की उपेक्षा की हुई घटना ने इनबें अशांत कर दिया। फिर, शांतिनाथ की सलाह पर गोरक्षपीठ पहुंचे और नाथपंथ की दीक्षा ले ली। शायद यही दैव इच्छा थी और कालांतर में नाथ संप्रदाय में दीक्षित अवैद्यनाथ महंत बनकर हिंदू समाज का नाथ हो गये। इसके बाद ये अपने गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ के सबसे अच्छे मददगार बन गये। महंत दिग्विजयनाथ पूरी मुखरता से हिंदुत्व की बात कर रहे और अब इनका शिष्य भी इसे धार देने लगा।
उल्लेखनीय है कि ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ मूलतः धर्माचार्य थे। वह देश के संत समाज में बेहद सम्मानीय एवं सर्वस्वीकार्य थे। दक्षिण भारत के रामनाथपुरम मीनाक्षीपुरम में हरिजनों के सामूहिक धर्मांतरण की घटना से वह खासे आहत हुए थे। इसका विस्तार उत्तर भारत में न हो इसके लिए वे सक्रिय राजनीति में आ गये।
चार बार सांसद-पांच बार विधायक रहे
महंत अवैद्यनाथ चार बार (1969, 1989, 1991 और 1996) गोरखपुर सदर संसदीय सीट से सांसद रहे। लोकसभा के अलावा उन्होंने पांच बार (1962, 1967,1969,1974 और 1977) में मानीराम विधानसभा का भी प्रतिनिधित्व किया। वर्ष 1984 में शुरु रामजन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति के शीर्षस्थ नेताओं में शुमार रहे। श्री रामजन्म भूमि यज्ञ समिति के अध्यक्ष व रामजन्म भूमि न्यास समिति के आजीवन सदस्य भी रहे। योग व दर्शन के मर्मज्ञ महंतजी के राजनीति में आने का मकसद हिंदू समाज की कुरीतियों को दूर करना और राम मंदिर आंदोलन को गति देना रहा।
बहुसंख्यक समाज को जोड़ने को उठाया कदम
बहुसंख्यक समाज को जोड़ने के लिए सहभोजों के क्रम में महंत ब्रह्मलीन अवैद्यनाथ ने बनारस में संतों के साथ डोमराजा के घर सहभोज किया। महंत अवेद्यनाथ ने वाराणसी व हरिद्वार में संस्कृत का अध्ययन किया है। महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद से जुड़ी शैक्षणिक संस्थाओं के अध्यक्ष व मासिक पत्रिका योगवाणी के संपादक भी रहे।