तिलोई अमेठी। सर्वधर्म समभाव के प्रतीक बाबा अब्दुल समद शाह की मजार में अनेकता में एकता के दर्शन होते हैं। यह मजार सभी धर्मावलंबियों को शांति सद्भाव प्रेम व इंसानियत का संदेश देती है। प्रत्येक वर्ष रमजान माह की 14 व 15 तारीख को होने वाले 59वां समद शाह का उर्स 6 व 7 अप्रैल 2023 को परम्परागत तरीके से मनाया जायेगा । बाबा की मजार पर जो भी श्रद्धा के साथ अपनी मुराद लेकर जाता है उसकी झोली भर कर आती है यही वजह रही है कि युग युगांतर से प्रदेश ही नहीं बल्कि कई देशों एवं प्रांतों में बसे लोगों का अटूट रिश्ता रहा बाबा के प्रति रहा है। सूफी संत का सेहरा प्राप्त शाह बाबा भीखीपुर के जमींदार पीर गुलाम के घर पैदा हुए थे इनके पिता का नाम चौ० आबिद अली था जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी फकीरी में काट दी। एक सिजरे के मुताबिक बाबा की पैदाइश के अंग्रेजी तारीख के मुताबिक जुलाई 1822 व इस्लामी तारीख चांद शाबान 1299 हिजरी में हुआ तथा पर्दा अंग्रेजी महीने के 7 जनवरी 1966 व इस्लामी तारीख के 14 रमजान 1385 हिजरी में होना बताया गया है बाबा 86 वर्ष 1 माह के कुल जीवन मे उस वक्त पर्दा किया जब जुमे के दिन मस्जिद में खुतबा हो रहा था। शाह बाबा ने अपनी शिक्षा मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के बेटे बाबा अब्दुल लतीफशाह सत्थिन शरीफ से लिया था । इन्हें पहले मियां अली रजा के नाम से पुकारा जाता था जिनकी खासियत बचपन से ही सिर्फ खास बुजुगों के बीच होती थी। समद शाह ने अपना पीर बाबा ताजुद्दीन को मानकर उनकी सागिर्द में नागपुर आते जाते रहे उसी दौरान सन 1913 में नागपुर से ताजुद्दीन बाबा ने भीखीपुर कह कर यह भेज दिया कि जुगराफिया हिंद पढ़कर आते। शाह बाबा ने वतन आकर ऐसा करिश्मा किया कि एक कमरे में बंद होकर के 40 दिनों तक उन्होंने सिर्फ ख़ुदा की इबादत की और जब व जब समय पूरा होने पर निकले तो देखा कि हजारों का मजमा लगा हुआ था लोग हटने का नाम नही ले रहे थे। बाबा की मजार पर मोहर्रम माह की 25, 26 तारीख को भी विशाल उर्स होता है जो बाबा के पीर (गुरु) की यादगार में बाबा ताजुद्दीन नागपुरी की यादगार में सम्पन्न होता है जिसे समद शाह ने अपने जीवन काल से ही वर्ष 1925 में लगाना शुरू कर दिया था जिसका सिलसिला आज भी चला आ रहा है जो सज्जादानशीन जफरुल हसन ताज़ी की सरपरस्ती में अकीदत के साथ मनाया जाता है । दूसरा रमजान माह की 14 व 15 तारीख को मनाया जाता है क्योंकि रमजान माह के 14 तारीख को समद शाह बाबा का पर्दा ( निधन ) भीखीपुर गांव में हुआ था जो उनकी यादगार में उनके मुरीदीन व अनुयायी मनाते हैं । उक्त दोनों तिथियां परंपरागत तरीके से तय है इसमें कोई बदलाव नहीं होता ना ही कोई प्रचार प्रसार किया जाता है। यहाँ बाबा के प्रति आस्था रखने वाले अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए साल में ही नहीं हमेशा बाबा की मजार पर आकर अपना मत्था टेकते रहते हैं। फिलहाल मोहर्रम में मेले में भारी जमावड़ा होता है इसलिए स्वास्थ विभाग की तरफसे कैम्प का भी आयोजन होता है। उर्स की रस्मो के बारे में जानकारी देते हुए सज्जादा नशीन जफरुल हसन ताजी बे बताया कि 6 व 7 अप्रैल को कुल शरीफ, ईद मिलादुन्नबी, कव्वाली, झंडा, लंगर, गागर, चादर पोशी आदि कार्यक्रम 2 दिनों तक चलता है। यहां पर आने वालों मे कोई जाति धर्म की रेखा नहीं है सभी धर्म के लोग यहां पर आकर अपना शीश नवाते हैं तथा मनौती एवं प्रसाद तथा चादर पोशी करते हैं। फिलहाल दो वर्ष कोरोनाकाल के चलते उर्स नही हुआ। बाबा के आस्ताने पर जो भी सच्चे दिल से अपनी मुराद लेकर आता है निश्चित ही उसकी कामना पूर्ण होती है लोग चादर, फूल व प्रसाद का चढ़ावा करते हैं।