अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र के यांगत्से में नौ दिसंबर को भारतीय फौजियों के साथ चीनी सैनिकों की झड़प की सूचना बाहर आने के बाद से पूरा विपक्ष केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हमलावर है। वे आरोप लगा रहे हैं कि सरकार की कमजोर नीतियों की वजह से हमारे सैनिक सीमा पर ‘‘पिट’’ रहे हैं। देश की सीमाओं की सुरक्षा में लगी हमारी सेना के अफसरों की ओर से वस्तुस्थिति स्पष्ट करने के बावजूद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और दूसरे विपक्षी नेता दावा कर रहे हैं कि चीन ने भारत की जमीन पर कब्जा कर लिया है। हालांकि इस मुद्दे पर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह संसद में बयान दे चुके हैं लेकिन विपक्ष संसद में बहस कराना चाहता है। दरअसर विपक्ष जानता है कि अंतरराष्ट्रीय संधियों और कूटनीतिक मजबूरी के चलते इस इस मुद्दे पर संसद में बहस नहीं कराई जा सकती। सरकार की इसी मजबूरी का राजनीतिक लाभ उठाने के लिए विपक्षी दल सत्ताधारी भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी को घेरने में जुटे हैं। यह घातक कोशिश है।
अंतरराष्ट्रीय सीमा पर खासतौर पर विवादित क्षेत्र में सैन्य गतिविधियों पर सरकार के आधिकारिक बयान का गहरा कूटनीतिक असर होता है। सरकार के हर बयान को दूसरा देश हथियार की तरह इस्तेमाल कर सकता है। चीन से लगी 3488 किलोमीटर लंबी भारतीय सीमा पर काफी बड़ा क्षेत्र ऐसा है जिसको लेकर दोनों देशों के बीच विवाद चला आ रहा है। भारत और चीन दोनो इन क्षेत्रों पर अपना दावा ठोंकते रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सरकार की ओर से सीमा पर चीन की आक्रामकता की बात पूरी ताकत से उठाई जा रही है।अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चीन तो लगातार भारत के खिलाफ दुष्प्रचार करता रहता है।
सोशल मीडिया में वायरल हो रहे एक वीडियो के आधार पर दावा किया जा रहा है कि तवांग में भारतीय फौजियों ने किस तरह चीनी सैनिकों की धुनाई की। यह वीडियो विदेशों में भी वायरल हो रहा है। इस वीडियो को देखकर ताइवान ही नहीं बल्कि पाकिस्तान तक में लोग भारतीय सेना के शौर्य की प्रशंसा कर रहे हैं। लेकिन मोदी विरोध में सारी सीमाएं लांघकर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी बेहूदे ढंग से कह रहे हैं कि भारतीय सैनिकों को सीमा पर ‘‘पीटा’’ जा रहा है। विदेश मंत्री एस जयशंकर और तमाम रक्षा विशेषज्ञों ने उनकी इस भाषा पर कड़ी आपत्ति जताई है। कुछ इसी तरह की बयानबाजी उन्होंने गलवान में भारतीय जाबांजों के बलिदान के बाद भी की थी।
पिछले कुछ सालों से वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन की आक्रामकता की खबरे ज्यादा आ रही हैं। इसका सबसे बड़ा कारण देश में मोदी सरकार बनने के बाद सामरिक नीति में आमूलचूल परिवर्तन होना है। चीन से लगी देश की सीमाओं को सुरक्षित बनाने के लिए दशकों पुरानी नीति को बदल कर मोदी सरकार ने आधारभूत ढांचे के विकास पर खासा जोर दिया। माना जाता है कि 2020 में भारत के 250 किलोमीटर से अधिक ऊंचाई वाले दारबुक-श्योक- दौलतबेग ओल्डी मार्ग का निर्माण तेज कर देने के कारण ही चीन की सेना ने आक्रामक होकर भारतीय गश्तीदल पर हमला कर दिया था। सीमा सड़क संगठन के बजट में भारी बढ़ोतरी करके एलएसी के आसपास के क्षेत्रों में सड़कों, पुलों और सुरंगों का निर्माण कराया जा रहा है जिससे जरूरत पड़ने पर भारतीय सेना, गोला बारूद और रसद को आसानी से पहुंचाया जा सके। उत्तराखंड के चार हिन्दू तीर्थों गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को जोड़ने के लिए तैयार की गई चार धाम राजमार्ग परियोजना को भले ही धार्मिक महत्व के तौर पर देखा जा रहा हो लेकिन सीमावर्ती क्षेत्र में इसके सामरिक महत्व को रक्षा विशेषज्ञ भलीभांति समझते हैं।
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग इन दिनों अंदरुनी राजनीति में बुरी तरह उलझ गए हैं। नियमों में बदलाव करके तीसरी बार चीन का राष्ट्रपति बनने के लिए उन्होंने अपने धुर विरोधी पूर्व राष्ट्रपति हू जिंताओं को चीन के ग्रेट हॉल में चल रही 20वीं पार्टी कांग्रेस से किस तरह बाहर निकलवा दिया यह किसी से छिपा नहीं है। इतना ही नहीं उन्होंने चीन का राष्ट्रपति बनने का प्रस्ताव पेश होने से पहले प्रधानमंत्री ली केकियांग और दूसरे पार्टी नेताओं को किनारे लगा दिया। इससे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर की उनका काफी विरोध हो रहा है। इसके अलावा दुनियाभर में कोरोना महामारी फैलाने का कलंक भी चीन और शी जिनपिंग के माथे लगा हुआ है। कोरोना की नई लहर को रोकने के नाम पर चीन में नागरिकों पर भारी प्रतिबंध लगा दिए गए। इसके खिलाफ लोगों ने विद्रोह कर दिया। दशकों बाद हुए विरोध प्रदर्शनों से जिनपिंग सरकार को अपने कदम पीछे खींचने पड़े। उसे जीरो कोविड नीति के विपरीत लोगों को कड़े प्रतिबंधो से छूट देनी पड़ी।
चीन से लगी सीमा की सुरक्षा को लेकर मनमोहन सिंह की सरकार ने वर्ष 2013 में अपने आखिरी समय में 80 जवानों वाली माउंटेन स्ट्राइक कार्प्स के गठन की योजना बनाई थी पर वह सिरे नहीं चढ़ सकी। इस योजना पर रक्षा विशेषज्ञों की राय रही है कि बिना आधारभूत ढांचे के दुगर्म क्षेत्रों में इन जवानों की तैनाती संभव नहीं है। इसके अलावा वर्तमान दौर में यु़द्धों को जीतने के लिए बड़ी सेना के मुकाबले स्मार्ट और आधुनिक तकनीकि वाली सेना ज्यादा महत्वपूर्ण है।
राष्ट्रीय हितों को दरकिनार कर राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए सरकार की कूटनीतिक मजबूरियों को फायदा उठाने की कोशिश में जुटे कई विपक्षी नेता चीन के सामान के आयात पर भी सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसे कार्यक्रमों के जरिए चीन से व्यापार घाटे की बढ़त रोकने के प्रयास किए जा रहे हैं। वर्तमान हालात का देखते हुए हमें तेजी से चीन पर निर्भरता को कम करना होगा। साथ ही विपक्ष के सामरिक महत्व के इस मुद्दे पर अनावश्यक राजनीति करने से परहेज करना होगा।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)