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कृषि क्षेत्र में जलवायु संकट, भंडारण की समस्या और निर्यात प्रतिबंधों की वजह से बढ़ी परेशानी से निपटने की तैयारी

Agriculture sector gears up to deal with climate crisis, storage problems and export restrictions

नई दिल्ली। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि देश की 47 प्रतिशत से अधिक आबादी अपनी आजीविका के लिए खेती पर निर्भर है। कृषि क्षेत्र में मजबूत वृद्धि से ग्रामीण आबादी की आय में बढ़ती है, जो औद्योगिक वस्तुओं की मांग का लगभग 40 प्रतिशत है। कृषि उत्पादन का उच्च स्तर मुद्रास्फीति को भी नियंत्रित रखता है।

दूसरी ओर, कृषि उत्पादन में गिरावट से खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ती हैं जिससे महँगाई बढ़ती है जिसके परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था अस्थिर हो जाती है और समग्र विकास को नुकसान पहुंचता है।

देश में कृषि क्षेत्र सरकार के लिए उच्च प्राथमिकता वाला क्षेत्र रहा है और पिछले कुछ वर्षों में यह स्थिर गति से बिना अवरोध के बढ़ रहा है। हालांकि, खेती के लिए जलवायु परिवर्तन एक विकट चुनौती के रूप में उभरा है, क्योंकि अनियमित मानसून ने फसलों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है और 2023 की जुलाई-सितंबर तिमाही में देश के कृषि उत्पादन की वृद्धि दर 3.5 प्रतिशत से घटकर मात्र 1.6 प्रतिशत रह गई है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत अंतरिम बजट में कृषि क्षेत्र में मूल्य संवर्धन और किसानों की आय बढ़ाने पर बड़ा जोर दिया गया है।

अंतरिम बजट का सरसों, मूंगफली, तिल, सोयाबीन और सूरजमुखी जैसे तिलहनों में "आत्मनिर्भरताÓ हासिल करने का लक्ष्य कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने और समग्र विकास दर को बढ़ाने में गेम-चेंजर साबित हो सकता है।

वित्त मंत्री ने अपने भाषण में कहा था कि इस क्षेत्र के लिए निवेश में खेती में उच्च उपज देने वाली किस्मों के लिए अनुसंधान, आधुनिक कृषि तकनीकों को व्यापक रूप से अपनाना, बाजार से जुड़ाव, खरीद, मूल्यवर्धन और फसल बीमा शामिल होंगे।

भारत खाद्य तेलों की अपनी आवश्यकता का लगभग दो-तिहाई आयात करता है, जिसमें 1.38 लाख करोड़ रुपये की बहुमूल्य विदेशी मुद्रा खर्च होती है। तिलहन में आत्मनिर्भरता से इस प्रवाह को संरक्षित करने में मदद मिलेगी और देश के व्यापार घाटे को नियंत्रण में रखने में भी मदद मिलेगी जिससे रुपये की मजबूती का मार्ग प्रशस्त होगा।

बजट में कृषि क्षेत्र में लागू की जाने वाली विभिन्न योजनाओं के लिए 1.27 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। इसके अलावा, किसानों को कम कीमत पर उर्वरक उपलब्ध कराने के लिए सब्सिडी के लिए 1.64 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।

कुशल उर्वरक उपयोग सुनिश्चित करने के लिए उठाए जा रहे कदमों का उल्लेख करते हुए, वित्त मंत्री ने नैनो यूरिया को सफलतापूर्वक अपनाने और सभी कृषि-जलवायु क्षेत्रों में विभिन्न फसलों के लिए इस नैनो डीएपी का विस्तार करने की नीति की बात कही।

सीतारमण ने यह भी कहा कि कृषि और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की तेज वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए एकत्रीकरण, आधुनिक भंडारण, आपूर्ति श्रृंखला, प्राथमिक और माध्यमिक प्रसंस्करण और विपणन तथा ब्रांडिंग सहित फसल कटाई के बाद की गतिविधियों में निजी और सार्वजनिक निवेश को बढ़ावा दिया जाएगा।

वर्तमान में, भारत में जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं के लिए कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं की कमी है और अनुमान है कि फलों तथा सब्जियों के मामले में फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को 30 प्रतिशत से 40 प्रतिशत तक टाला जा सकता है।

सीतारमण ने किसानों को "अन्नदाताÓ बताते हुए कहा कि कृषि उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य समय-समय पर उचित रूप से बढ़ाया जा रहा है और पीएम-किसान सम्मान के तहत हर साल 11.8 करोड़ किसानों को प्रत्यक्ष वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है। इसके अलावा, पीएम फसल बीमा योजना के तहत चार करोड़ किसानों को फसल बीमा का लाभ मिल रहा है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम औपचारिकीकरण योजना ने 2.4 लाख स्वयं सहायता समूहों और 60 हजार व्यक्तियों को क्रेडिट लिंकेज से सहायता प्रदान की है।

वित्त मंत्री ने कहा कि अन्य योजनाएं फसल कटाई के बाद के नुकसान को कम करने और उत्पादकता और आय में सुधार के प्रयासों को पूरक बना रही हैं। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना से 38 लाख किसानों को लाभ हुआ है और 10 लाख लोगों के लिए रोजगार पैदा हुआ है।

वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार ने 1,361 मंडियों को एकीकृत किया है और तीन लाख करोड़ रुपये के व्यापार के साथ 1.8 करोड़ किसानों को सेवाएं प्रदान कर रहा है। इन प्रवधानों के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों में वास्तविक आय में वृद्धि हुई है जिससे उनकी आर्थिक जरूरतों को पूरा किया जा सकता है, विकास को बढ़ावा मिलेगा और नौकरियां पैदा होंगी।

भारत दुनिया में गेहूं, चावल और चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है, लेकिन बढ़ती घरेलू कीमतों पर लगाम लगाने के लिए सरकार को इन वस्तुओं के निर्यात को प्रतिबंधित करने के लिए मजबूर होना पड़ा है क्योंकि अनियमित मानसून कृषि उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक है और एशिया, अफ्रीका और मध्य पूर्व के देशों में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर रहा है। इसलिए, निर्यात पर प्रतिबंध से इन देशों में भोजन की उपलब्धता पर भी असर पड़ा है।

इस साल भारत के कृषि निर्यात में चार से पाँच अरब डॉलर की गिरावट आने की उम्मीद है। हालांकि, वाणिज्य मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव राजेश अग्रवाल का मानना है कि अन्य कृषि वस्तुओं के निर्यात में वृद्धि से इस साल निर्यात घाटा पूरा हो जाएगा।

अग्रवाल ने पत्रकारों से कहा, अगर हम गेहूं और चावल जैसी कृषि वस्तुओं को हटा दें, जिनका निर्यात नियंत्रित है, तो अन्य खाद्य निर्यात चार प्रतिशत से अधिक बढ़ रहा है और चार-पाँच अरब डॉलर के अंतर को पूरा कर देगा।

कृषि और प्रोसेस्ड उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल अप्रैल और नवंबर के बीच मांस और डेयरी, अनाज से बने उत्पाद और फलों तथा सब्जियों के निर्यात में वृद्धि हुई है। ऐसे में वित्त मंत्री भविष्य में कृषि के क्षेत्र में वृद्धि को लेकर आशावादी हैं। उन्होंने ऐसे में अपने बजट भाषण में कहा कि कृषि क्षेत्र समावेशी, संतुलित, उच्च विकास और उत्पादकता के लिए तैयार है। इन्हें किसान-केंद्रित नीतियों, आय सहायता, मूल्य और बीमा समर्थन के माध्यम से जोखिमों की कवरेज, स्टार्ट-अप के माध्यम से प्रौद्योगिकियों और नवाचारों को बढ़ावा दिया जाता है।

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