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बढ़ते व्यापार घाटे की चुनौती

The challenge of rising trade deficit
Highlights भारत की भुगतान व्यवस्था रुपए और रूस की भुगतान व्यवस्था रूबल के बीच उपयुक्त सामंजस्य बनाने की कोशिश दोनों देशों के लिए लाभप्रद होगी। अतीत में जब विदेशी मुद्रा में तेज गिरावट आई तब प्रवासियों ने मुक्त हस्त से विदेशी मुद्रा कोष को बढ़ाने में सहयोग दिया था। ज्ञातव्य है कि पश्चिमी देशों के द्वारा रूस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों की काट खोजने के मद्देनजर एशिया के कई देश रूस के साथ डॉलर और यूरो के बजाय एशियाई मुद्राओं में कारोबार करने लगे हैं।

डा. जयंतीलाल भंडारी

इस समय एक ओर तेजी से बढ़ता देश का व्यापार घाटा तो दूसरी ओर तेजी से घटता हुआ देश का विदेशी मुद्रा भंडार आर्थिक चिंता का बड़ा कारण बन गया है। हाल ही में प्रकाशित विदेश व्यापार के आंकड़े तेजी से बढ़ते व्यापार घाटे का संकेत दे रहे हैं। इस वित्तीय वर्ष 2022-23 में अप्रैल-जून की तिमाही के दौरान भारत का कुल निर्यात बढक़र 121 अरब डॉलर रहा, वहीं इस अवधि में आयात और तेजी से बढक़र 190 अरब डॉलर की ऊंचाई पर पहुंच गया। इस तरह इस तिमाही में भारत को 69 अरब डॉलर का घाटा हुआ। जहां जुलाई 2022 में देश में 66.27 अरब डॉलर मूल्य का आयात किया गया, वहीं 36.27 अरब डॉलर का निर्यात किया गया। ऐसे में जुलाई 2022 में भी 30 अरब डॉलर का व्यापार घाटा दिखाई दिया। यह व्यापार घाटा पिछले वर्ष जुलाई 2021 में 10.63 अरब डॉलर था। सालाना आधार पर जुलाई 2022 में आयात में 43.61 फीसदी वृद्धि हुई है। इसी तरह 19 अगस्त को भारत के विदेशी मुद्रा भंडार का आकार घटते हुए 564.05 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है। देश का विदेशी मुद्रा भंडार 3 सितंबर 2021 को 642.45 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्चतम स्तर पर था। अब तक रूस और यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक मंदी की आशंका और कच्चे तेल की ऊंची कीमत के कारण जो डॉलर लगातार मजबूत हुआ है, वह डॉलर चीन और ताइवान के बीच गहरे तनाव के मद्देनजर और मजबूत होने की प्रवृत्ति बता रहा है।

ऐसे में देश के तेजी से बढ़ते व्यापार घाटे पर नियंत्रण एवं विदेशी मुद्रा भंडार को घटने से बचाने के लिए निर्यात बढ़ाने और अनावश्यक आयात घटाने के लिए अधिक कारगर प्रयासों की जरूरत बढ़ गई है। उल्लेखनीय है कि भारत अपनी क्रूड आयल की करीब 80-85 फीसदी जरूरतों के लिए व्यापक रूप से आयात पर निर्भर है। ऐसे में कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से इसकी खरीदी पर भारत के द्वारा अधिक डॉलर खर्च करने पड़ रहे हैं। साथ ही देश में कोयला, उवर्रक, वनस्पति तेल, दवाई के कच्चे माल, केमिकल्स आदि का आयात लगातार बढ़ता जा रहा है, जिससे डॉलर की जरूरत और ज्यादा बढ़ गई है। परिणामस्वरूप व्यापार घाटा बढ़ रहा है और विदेशी मुद्रा भंडार का आकार कम होता जा रहा है। चूंकि पिछले वर्ष 2021-22 में वैश्विक आर्थिक चुनौतियों के बीच भी भारत का उत्पाद निर्यात करीब 419 अरब डॉलर के ऐतिहासिक स्तर पर पहुंचा है। अतएव हमें और अधिक निर्यात बढ़ाकर अधिक डॉलर की कमाई करनी होगी। वर्ष 2021-22 में भारत के द्वारा अमेरिका को 76 अरब डॉलर का निर्यात किया गया था। अब अमेरिका में मंदी की शुरुआत जैसी स्थिति के मद्देनजर भारतीय निर्यात पर असर दिख रहा है। चीन सहित दुनिया के कई देशों को भी निर्यात बढ़ाने में चुनौती दिख रही है। ऐसे में निर्यात के नए बाजार खोजना जरूरी हैं। उल्लेखनीय है कि विदेश मंत्री जयशंकर 22 से 27 अगस्त तक लैटिन अमेरिका के तीन देशों ब्राजील, अर्जेंटीना व पैराग्वे के दौरे पर रहे और वहां उन्होंने निर्यात बढ़ाने की संभावनाएं खोजी।

पिछले वित्त वर्ष में लेटिन अमेरिकी देशों को 18.89 अरब डॉलर मूल्य का निर्यात किया गया था। वैश्विक जरूरतों के अनुरूप घरेलू उत्पाद बढ़ाकर नए चिन्हित देशों में उत्पाद निर्यात बढ़ाने के साथ-साथ सेवा निर्यात भी तेजी से बढ़ाना जरूरी है। चूंकि कोविड-19 के बीच भारत ने 200 से अधिक देशों को कोरोना की दवाइयां निर्यात की हैं। अतएव ऐसे भारत से भावनात्मक रूप से जुड़े देशों में निर्यात की नई संभावनाएं मुठ्ठियों में ली जा सकती हैं। अब देश के द्वारा मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) को तेजी से आकार देने की रणनीति पर भी आगे बढऩा होगा। इससे भी निर्यात बढ़ेंगे। हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक के द्वारा भारत और अन्य देशों के बीच व्यापारिक सौदों का निपटान रुपए में किए जाने संबंधी महत्त्वपूर्ण निर्णय से जहां भारतीय निर्यातकों और आयातकों को अब व्यापार के लिए डालर की अनिवार्यता नहीं रहेगी, वहीं अब दुनिया का कोई भी देश भारत से सीधे बिना अमेरिकी डालर के व्यापार कर सकता है। जहां डॉलर संकट का सामना कर रहे रूस, संयुक्त अरब अमीरात, इंडोनेशिया, श्रीलंका, ईरान, एशिया और अफ्रीका सहित कई छोटे-छोटे देशों के साथ भारत का विदेश व्यापार तेजी से बढ़ेगा, वहीं भारत का व्यापार घाटा कम होगा और विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ेगा। इस परिप्रेक्ष्य में उल्लेखनीय है कि जिस तरह भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय कारोबार को ज्यादा से ज्यादा एक-दूसरे की मुद्राओं में करने को लेकर दोनो देशों ने कदम आगे बढ़ाए हैं, उसी तरह भारत के द्वारा अन्य देशों के साथ एक-दूसरे की मुद्राओं में भुगतान की व्यवस्था सुनिश्चित करना होगी।

यह बात महत्वपूर्ण है कि रूस ने कहा है कि भारत की भुगतान व्यवस्था रुपए और रूस की भुगतान व्यवस्था रूबल के बीच उपयुक्त सामंजस्य बनाने की कोशिश दोनों देशों के लिए लाभप्रद होगी। ज्ञातव्य है कि पश्चिमी देशों के द्वारा रूस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों की काट खोजने के मद्देनजर एशिया के कई देश रूस के साथ डॉलर और यूरो के बजाय एशियाई मुद्राओं में कारोबार करने लगे हैं। फरवरी 2022 के बाद से भारत ने रूस से काफी ज्यादा क्रूड खरीदना शुरू कर दिया है जिसका असर द्विपक्षीय कारोबार पर भी दिखाई देने लगा है। सरकार के नए फैसले का देश की पेट्रोलियम कंपनियों को भी फायदा हुआ है और विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर के व्यय में भी कुछ कमी आई है। अगर भारत सरकार रुपए में कारोबार करने को प्रोत्साहन करने लगे तो इससे निर्यातकों के बीच रुपए को लेकर स्वीकार्यता बढ़ेगी। अभी डॉलर या यूरो में निर्यात की कमाई लाने वाले निर्यातकों को सरकार की तरफ से कर छूट दी जाती है। यह छूट रुपए में निर्यात की कमाई लाने में उपलब्ध नहीं है। ऐसी स्कीम को तैयार किया जाना चाहिए जिससे रुपए में वैश्विक कारोबार की अनुमति बढ़े और व्यापार घाटे में कमी आ सके। यह जरूरी है कि घरेलू उत्पादन वृद्धि और स्थानीय उद्योगों को प्रोत्साहन के साथ आत्मनिर्भर भारत आभियान को तेजी से आगे बढ़ाकर व्यापार घाटे में कमी की जाए। हमें विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने में प्रवासी भारतीयों का अधिक सहयोग लेना होगा।

अतीत में जब विदेशी मुद्रा में तेज गिरावट आई तब प्रवासियों ने मुक्त हस्त से विदेशी मुद्रा कोष को बढ़ाने में सहयोग दिया था। जब 11 और 13 मई 1998 को भारत के द्वारा किए गए परमाणु परीक्षण पोखरण-2 विस्फोट के बाद अमेरिका के द्वारा भारत पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों को देखते हुए विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत करने हेतु अगस्त 1998 में रीसर्जेंट इंडिया बॉन्ड्स की मदद से 4.8 अरब डॉलर की राशि जुटाई गई थी। इस तरह 2001 में इंडिया मिलेनियम डिपॉजिट स्कीम की मदद से करीब 5 अरब डॉलर से अधिक की राशि जुटाई गई। ऐसे प्रयासों से विदेशी मुद्रा भंडार की चिंताएं कम हुई थी। अब रुपए में वैश्विक कारोबार बढ़ाने के मौके को भी मुठ्ठियों में लेकर डॉलर की चिंताओं को कम किया जाना होगा। हम उम्मीद करें कि सरकार द्वारा निर्यात बढ़ाने और विदेशी मुद्रा भंडार को घटने से बचाने के मद्देनजर इस आलेख में दिए गए सुझावों के अमल से उत्पाद निर्यात और सेवा निर्यात बढऩे से भी अधिक विदेशी मुद्रा प्राप्त हो सकेगी। अनावश्यक आयात में कमी करके डॉलर के खर्च में बचत की जा सकेगी। प्रवासी भारतीयों से अधिक विदेशी मुद्रा का सहयोग प्राप्त हो सकेगा। इन सबके कारण निर्यात बढ़ाए जा सकेंगे, व्यापार घाटे में कमी लाई जा सकेगी और घटता हुआ विदेशी मुद्रा भंडार फिर से संतोषजनक स्थिति में पहुंचते हुए दिखाई दे सकेगा।

(लेखक विख्यात अर्थशास्त्री है)

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